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. अनेकान्त
[आषाद, वीर-निर्वाण सं०२४६५
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इन ग्रंथों में जो मंत्रवाद है उसके एक मंत्रका २०३ पत्र पर संख्याङ्क २० पड़ा हुआ है और १९ पत्र नमूना इस प्रकार है
पर जिस 'बालतंत्र' के कथनका उल्लेख है उसकी समाप्ति __मों नमो भगवते पारवडाप चंद्रहासेन खनेन २०वें पत्र पर “योनिप्राभृते बालानां चिकित्सा समाता" गर्दभस्य सिरं विषय विदय बुटवणं हन हन लूतां हन वाक्यके द्वारा सूचित की गई है तथा २०वें पत्रसे ही हन जानामर्दभं हन हन गंडमाला हन हन विधि हन दूसरे ग्रंथ 'जगत्सुन्दरीयोगमाला' का प्रारम्भ हुआ है, हन विष्फोटकसान हन हन फट् स्वाहा।"
तब योनिप्राभृतकी समाप्तिका सूचक वह हकीकत___ ग्रंथप्रतिके कुल कितने पत्रे हैं और उनकी लम्बाई- वाला अन्तिम पत्र बिना संख्याङ्कके कैसे है, यह बात चौड़ाई क्या है, यह उक्त नोटों परसे मालूम नहीं हो कुछ समझमें नहीं आती ! हो सकता है कि उसे अंकसका, और न यही मालूम हो सका है कि 'योनिप्राभृत' रहित नोट करने में कुछ गलती हुई हो और उसका वह ग्रंथकी गाथासंख्या क्या है । हाँ, ऊपर १६वें पत्रका अवतरण २०वें पत्रकी पूर्व पीठका ही भाग हो। परन्तु जो अंश उद्धृत किया है उसकी अन्तिम पंक्ति के सामने उस हालतमें यह प्रश्न पैदा होता है कि जब उत्तर पीठ ६१६ का अंक दिया है, उससे ऐसा ध्वनित होता है कि परसे जर्गत्सुन्दरी योगमालाकी कुछ गाथाएँ उद्धृत की सायद यहीं इस ग्रन्थकी गाथा संख्या हो। परन्तु अभी गई हैं और उनपर गाथाअोंके ४० आदि नम्बर पड़े निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता।
थाओंके लिये उस पत्र पर और __इस प्रकार यह दोनों ग्रंथोंका संक्षिप्त परिचय है। कौनसा स्थान अवशिष्ट होगा । मूल ग्रन्थप्रतिको विशेष-परिचयके लिये पूरी ग्रंथप्रतिको खूप छान बीनके देखे बिना इन सब बातों का ठीक समाधान नहीं हो साथ देखने की ज़रूरत है-उसी परसे यह मालूम हो सकता । श्राशा है प्रो० ए० एन० उपाध्याय जी किसी सकेगा कि कौन ग्रंथ पूरा है और कौन अधरा । यह समय उक्त प्रतिको देखकर उस पर विशेष प्रकाश डालने ग्रन्थप्रति बहुत जीर्ण-शीर्ण है अतः इसकी अच्छे की कृपा करेंगे, और यदि हो सके तो ग्रंथप्रतिको मेरे सावधान लेखकसे शीघ्र ही कापी कराई जानी चाहिये, पास भिजवाकर मुझे अनुगृहीत करेंगे। उस समय मैं जिससे जो कुछ भी अवशिष्ट है उसकी रक्षा हो सके। इसकी रही-सही बातों पर पूरा प्रकाश डालनेका यस्न मेरी रायमें सबसे अच्छा तरीका फोटो लेलेने का है, करूँगा । खेद है कि हमारी असावधानी और अनोखी इससे जाँचनेवालोंके लिये लिपि श्रादिकी सब स्थिति श्रुतभक्तिके प्रतापसे हमारे ग्रंथोंकी ऐसी दुर्दशा हो रही एक साथ सामने श्राजाती है।
है ! और किसीको भी उनके उद्धारकी चिन्ता नहीं है !! ___ हाँ, एक बात यहाँ और भी प्रकट कर देने की है,
वीर-सेवा-मन्दिर, सरसावा, और वह यह कि जब १६वें पत्र पर संख्याङ्क १६ तथा
ता० १४-६-१९३६