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रायचन्द भाईके कुछ संस्मरण
[ले. महात्मा गान्धी] मज जिनके पवित्र संस्मरण लिखना प्रारंभ करता सगे संबंधियोंसे मिल, और उनसे जानने योग्य
हूँ, उन स्वर्गीय श्रीमद् राजचन्द्रकी आज बातें जानकर ही फिर कहीं लिखना प्रारम्भ करूँ। जन्मतिथि है । कार्तिक पूर्णिमा (संवत् १९२४) परन्तु इनमेंसे मुझे किसी भी बातका परिचय नहीं। को उनका जन्म हुआ gammatrammmmmmmmmmmmmmmitra इतना ही नहीं, था । मैं कुछ यहाँ। महात्मा गान्धीजीके जीवन पर जिनके व्यक्तित्वकी सबसे । मुझे संस्मरण लिखनेश्रीमद् राजचन्दका अधिक गहरी छाप पड़ी है, महात्माजीको जिनके प्रति की अपनी शक्ति और जीवनचरित्र नहीं 1 बहुमान है और जिनके गाढ परिचयमें महात्माजी रहा।
चके हैं उन पुरुषोत्तम एवं कविश्रेष्ठ श्रीमद् राजचन्य लिख रहा हूँ। यह
शंका है । मुझे याद है अथवा रायचन्दजीके कुछ संस्मरण स्वयं महात्मा गांधीकार्य मेरी शक्तिके
जीके लिखे हुए प्राप्त होना कम प्रससताकी बात नहीं है। मन कई बार ये विचार बाहर है। मेरे पास ये संस्मरण महात्माजीने यरवदा जेलमें लिखे थे और / प्रकट किये हैं कि अवसामग्री भी नहीं । उन-1बादको उस प्रस्तावनामें अन्तर्भूत किये गये थे,जो उन्होंने ! काश मिलने पर उनके का यदि मुझे जीवन-1 परम भुत प्रभावक मंडल बम्बईसे प्रकाशित होने वाले
संस्मरण
मो चरित्र लिखना हो तो श्रीमद्राजचन्द्र' ग्रंथकी द्वितीय गुजराती भावृत्तिके
। एक शिष्यने जिनके लिये लिखी थी। हालमें प्रस्तावना सहित उक्त संस्मरण मुझे चाहिये कि
पं. जगदीशचन्द्रजी शास्त्री एम. ए. द्वारा प्रमानिलिये मुझे बहुत मान मैं उनकी जन्मभूमि होकर उक्त ग्रंथके हिन्दी संस्करणमें प्रकट हुए हैं। भने- है,ये विचार सुने और ववाणीबंदरमें कुछ कान्तके पाठकों के लिये उपयोगी समझ कर उन्हें यहाँ / मुख्यरूपसे यहाँ उन्हींसमय बिताऊँ. उनके उधृत किया जाता है। प्रस्तावनाके मुख्यभागको । क सन्तोषके लिये यह रहनेका मकान देखें, पाराशष्ट' स्पर्म ३ दिया गया है। -सम्पादक लिस
है। श्रीमद्राजउनके खेलने कूदनेके " स्थान देखू , उनके बाल-मित्रोंसे मिलूँ, उनकी भाई' अथवा 'कवि' कहकर प्रेम और मान पूर्वक पाठशालामें जाऊँ, उनके मित्रों, अनुयायियों और सम्बोधन करता था । उनके मंस्मरण लिखकर
लखंगा ।