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..... “अनेकान्त
[ज्येष्ट, वीर-निर्वाण सं०२४१५.
-- हमें यदि अनेक योनियों में भटकना पड़ेगा तो श्री- मोह छोड़ कर-मात्मार्थी बनेंगे। . . . .--- मदको शायद एक ही जन्म बस होगा । हम इसके ऊपरसे पाठक देखेंगे कि श्रीमदके लेख शायद मोक्षसे दूर भागते होंगे तो श्रीमद् वायुवेग- अधिकारीके लिये ही योग्य हैं । सब पाठक तो से मोक्षकी ओर से जा रहे थे। यह कुछ थोडा उसमें रम नहीं ले सकते । टीकाकारको उसकी पुरुषार्थ नहीं। यह होने पर भी मुझे कहना होगा टीकाका कारण मिलेगा । परन्तु श्रद्धावान तो उसकि श्रीमद्ने जिस अपूर्व पदका स्वयं सुन्दर वर्णन मेंस रम ही लूटेगा। उनके लेखोंमें सत् नितर रहा किया है, उसे वे प्राप्त न कर सके थे। उन्होंने ही है, यह मुझे हमेशा भास हुआ है। उन्होंने अपना स्वयं कहा है कि उनके प्रवाममें उन्हें सहाराका ज्ञान बनाने के लिये एक भी अक्षर नहीं लिखा। मरुस्थल बीच में आ गया और उमका पार करना लेखकका अभिप्राय पाठकोंको अपने आत्मानन्दमें बाकी रह गया । परन्तु श्रीमद् राजचन्द्र अमाधारण महयोगी बनानेका था । जिसे आत्म क्लेश दूर व्यक्ति थे। उनके लेख उनके अनुभवके बिंदु के करना है, जो अपना कर्तव्य जानने के लिए उत्सुक समान हैं। उनके पढ़ने वाले, विचारने वाले और है, उसे श्रीमद्कं लेखों में से बहुत कुछ मिलेगा, ऐसा तदनुसार आचरण करने वालोंको मोक्ष सुलभ मुझे विश्वास है, फिर भले ही कोई हिन्दू धर्मका होगा, उनकी कषायें मन्द पड़ेगी, और वे देहका अनुयायी हो या अन्य किमी दूसरे धर्मका । जागति गीत.....
जागरं उठनकं अरमान ! जड़ता काट, भगा कायरता,
तेरा हास्य प्रलय ला दे, होआलस छोड़, दिखा तत्परता;
संकट का अवसान । दम्भ, अनीति कुचल पैरोंसे,
जागरे उठनेके अरमान ! गा सुक्रान्तिकर गान ।
तनिक क्रोधसे अखिल चराचरजागरे उठने के अरमान !
कम्पित हो यह प्रतिक्षा थर थर; अनल उगल हाहाकारोंसे,
एक अजेय शक्ति दे जाएँविश्व कैंपादे हुँकारो से;
तेरे ये बलिदान ।
जागरे उठनेके अरमान ! पाह-ज्वालसे भस्मसात्। पापीका अभिमान ।
ध्रुव प्राशाके पीकर प्याले,
हो जाएं मानव मतवाल; जागरे उठनेक अरमान .
सत्य-प्रेमके पागलपनमेंहूकों से यह हूक उठे जगः
हो पथका निर्माणा। कसकोंसे यह कृक उठं जग,
जागरे उठनेके अरमान ! तेरी दृढ़तासे आजाए
दुःख, वैर, परिताप दूर हों, . मुर्दो में भी जान ।
देष, घृणा अभिशाप चुर हों; जागरे उठनेके भरमान !
जीवन में नवज्योति जाग. फिरअट्टहाससे हंसदें नारे,
लाये नव वरदान । ---- - . नियर जैन "मरंश"] जागरे उठने के अरमान !