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वर्ष २, किरश] . -
भाम्य चौर पुरुषार्थ
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. गाथा ६९-काठकी बनी हुई खीसे भी डरना पुलमिल नहीं जाते सबको भी. इस देना शुरू चाहिये, क्योंकि निमित्त कारण के मिलने से चित्त चलाय- नहीं करते है, धुलने मिलने में जो समय लगता है उसको मान होता है।
भाकाषा काल कहते हैं। इसके बाद में जिस निमित्त कारणके मिलनेसे कर्म किस तरह भड़क तरह. कोयलोंका कुछ भाग जल-जमार राख होता उठते हैं इसका उल्लेख गोम्मटसारमें संशाओंके वर्णनमें रहता है उसी तरह कोका भी एक-एक भाग मय-इस प्रकार मिलता है--
क्षणमें झड़ता रहता है, इसही को काँकी निर्णय होते गाथा १३३--जिसके निमित्तसे भारी दुःख प्राप्त रहना कहते है। हो ऐसी बाँच्छाको संशा कहते हैं । श्राहार, भय, मैथुन अङ्गीठी पर कोई नीड पकनेको रखी हो, तो.. भी और परिग्रह यह चार संशाएँ हैं।
अङ्गीठीके कोयलोंका थोड़ा थोड़ा हिस्सा जल जलकर गाथा १३४-आहारके देखने वा याद करनेसे राख जरूर होता रहेगा। इस ही प्रकार कोंको भी पेट भरा हुश्रा न होनेपर असातावेदनी कर्मकी उदय अपना भला बुरा फल देनेके वास्ते कोई निमिसि मिले उदीरणा होकर आहारकी इच्छा पैदा होती है। या न मिले तो भी क्षण क्षणमें उनका एक एक हिस्सा
गाथा १३५-किसी भयंकर पदार्थ के देखने वा ज़रूर कड़ता रहेगा । फल देने योग्य कोई निमित्त नहीं याद करनेसे शक्तिके कम होनेपर भयकर्मकी उदय मिलेगा तो बिना फल दिये ही अर्थात् बिना उदयमें उदीरणा होकर भय उत्पन्न होता है।
प्राये ही उस हिस्सेकी निर्जरा होती रहेगी। जिस कर्मकी गाथा २३६---स्वादिष्ट, गरिष्ट, रसयुक्त भोजन जो स्थिति बँधी होगी अर्थात् जितने काल तक किसी करनेसे, कुशील सेवन करने वा याद करनेसे वेद कर्म-कर्मके कायम रहनेकी मर्यादा होगी उतने काल तक की उदय उदीरणा होकर काम-भोगकी इच्छा होती है। बराबर उस कर्मके एक एक हिस्सेकी निर्जरा वणवण___ गाथा १३७-पदार्थोके देखने वा याद करनेसे में जरूर होती रहेगी। परन्तु जिस प्रकार मजीठीमें लोभ कर्मकी उदय-उदीरणा होकर परिग्रहकी इच्छा मिट्टीका तेल पड़ जानेसे वा तेज हवाके लगनेसे होती है।
अङ्गीठीके कोयले एकदम ही भवक उठते हैं, जिससे गोम्मटसारके इस कथनका सार यही है कि कोयलोका बहुत-सा हिस्सा एकदम जलकर राख हो निमित्त कारणोंके मिलनेसे कर्म उदयमें प्राजाते है। जाता है उसीप्रकार किसी भारी निमित्त कारणके अर्थात् कषाय भड़कानेका अपना कार्य करने लग जाते मिलने पर कोंका भी बहुत बड़ा हिस्सा एकदम भरक
। यह बात अच्छी तरह समझमें आजाने के लिये उठता है, कोका जो हिस्सा बहुत देर में उदयमें प्राता हम फिर जलते हुए कोयलोंसे भरी हुई अंगीठीका है, वह भी उसी दम उदयमें आ जाता है। इस ही को दृष्टान्त देते हैं । जिस तरह अंगीठीमें मरे हुए कोयले जब उदीरणा कहते है। तक अच्छी तरह भाग नहीं पकड़ लेते हैं तब तक वह कोका कोई हिस्सा बिना फल दिये मी कैसे अंगीठी पर रखी हुई चीजको पकाना शुरू नहीं करते करता रहता है, इसको समझने के लिये यह जानना हैं, उसी तरह नवीन कर्म भी जबतक पुराने कोंसे चाहिये कि, साता और असाता अर्थात् सुख देनेवाला