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.. अनेकान्त .....
[वैशाख, वीर-निर्वाण सं० २०६५
मन्दिर इधर-उधरसे महत्वके प्राचीन ग्रन्थोंको संग्रह करके इस मकानकी योजना की गई है। उसके बाहरका दृश्य उनकी मात्र रक्षा और वहीं पर पढ़नेकी सुविधाका काम बहुत ही भव्य है । संगमर्मरकी विशाल सीढ़ियोंकी श्रेणी ही नहीं करेगा बल्कि ऐसे अलभ्य ग्रन्थोंको प्रकाशित और उनके ऊपर एलोराके जगद्विख्यात गुहामन्दिरों के कर उन्हें सविशेषरूपसे लोकपरिचयमें लानेका यत्न भी ढंगके सुन्दर स्तम्भ इस मन्दिरके बनाने वालेकी विशाकरेगा जोअभीतक अप्रकाशित है। इसीसे उद्घाटनके लता और कला-प्रियताकी प्रतीति कराते हैं। जानमन्दिरअवसर पर मुन्शीजीने कहा था-'यह जो ज्ञान-मन्दिर के अन्दर प्रवेश करने पर बीच में विशाल हॉल.और तय्यार हना है वह पुस्तकोंको संग्रह करके हीन रक्खे चारों तरफ सब मिलाकर सात खण्ड दृष्टिगोचर होते हैं। बल्कि उन्हें छपाकर-उद्धार करके जगतको सौंपे ।' उनमेंके दायें बायें हाथ के पहले दो खण्ड साधारण ढंगइससे इस शान-मन्दिरका उद्देश्य कितना उत्कृष्ट तथा के है और उनका उपयोग ज्ञानमन्दिरके श्रॉफिसके तौर महान है और उसे पूरा करता हुआ यह शान-मन्दिर पर किया जायगा । शेष पाँच खण्ड खास तौरसे लोहेकितना अधिक लोकका हित-साधन करेगा-कितने ज्ञान- के बनाये गये हैं, जिससे उनके भीतर के अन्य किसी भी पिपासुत्रोंकी पिपासाको शान्त करेगा-उसे बतलानेकी स्थितिमें सुरक्षित रह सकें, अग्निका इन खण्डों पर किसी. जरूरत नहीं, सहृदय पाठक स्वयं समझ सकते हैं। जिन भी तरहका असर नहीं पड़ सकता । हवा के आने जानेके ग्रन्थोंकी प्राप्ति के लिये बहुत कुछ इधर-उधर भटकना लिये भी इन खण्डों में सब तरहका प्रबन्ध किया गया है, पड़ता था और भण्डारियोंकी मिन्नत खुशामदें करने पर जिससे नमी नहीं पहुँच सकती और दीमक वगैरह जन्तु भी उनके दर्शन नहीं हो पाते थे, उनकी प्राप्तिका ऐसा नीचे नीचे ज़मीनमेंसे कभी कोई प्रकारका उपद्रव न कर सुगम मार्ग खुल जाने के कारण किस साहित्य-प्रेमीको सकें इसके लिये बहुत गहरी नीवमें नीले थोथेसे मिश्रित हर्ष न होगा?
किया हुआ सीमेंट कंक्रीट भरा गया है। इन खण्डों पर "पाटणके उक्त पाठ ज्ञान-भण्डारोंकी प्रमुख-साहित्य- साथ ही साथ विशाल गैलरी भी बनाई गई है । यह सामग्री ही अभी तक इस ज्ञान-मन्दिरमें एकति मकान ज़मीनसे ८ फुट ऊँचा है, इसलिये वर्षाकालमें हई है। प्राशा है दूसरे स्थानोंके ऐसे शास्त्र-भण्डारोप भी इसको कोई प्रकारका भय नहीं है । ३६ फीट ऊँचा भी इस मन्दिरको शीघ्र ही महत्वक ग्रन्थ रत्नोंकी प्राति होनेसे यह मकान खब अाकर्षक मालम होता है। होगी जहाँ उनकी रक्षा तथा उपयोगका कोई समुचित इसमें सन्देह नहीं कि श्वेताम्बर भाइयोंका यह प्रबन्ध नहीं है।
ज्ञानमन्दिर ज्ञान-पिपासुओंके लिये एक ज्ञान प्याऊका । मन्दिरकी निर्माण-विशिष्टता
काम देगा और देश-विदेशके हजारों विद्वानोंके लिये - इस ज्ञान-मन्दिरका निर्माण पाटणके पंचासरा
यात्राधाम बनेगा। इसके निर्वाहार्थ सेठ हेमचन्दकी उक्त पार्श्वनाथके भव्य मन्दिरके पास ही हुआ है। निर्माण
दस हजारकी रकमके अतिरिक्त २१ हजारकी और भी की योजना तय्यार करने में सेठ हेमचन्दजीको बड़ा भारी रकम कुछ गृहस्थ
रकम कुछ गृहस्थोंकी तरफसे जमा हुई है और अधिक
रकम जमा करने के लिये बम्बई तथा पाटनमें प्रयत्न जारी परिश्रम उठाना पड़ा है। सबसे पहले मन्दिरकी रचनाके
है, और ये सब भावीके शुभ चिन्ह हैं । लिये उन्हें हिन्दुस्तान तथा युरोपके अपने मित्रों तथा कितने ही होशियार इंजिनियरोंके साथ खुब सलाह
- मशविरा करना पड़ा; क्योंकि ज़रूरत इस बातकी थी कि मकान ऐसी रीतिसे बनाया जाय जिससे उसमें नमी, ® इस लेखके संकलित करने में श्रीधीरजखाल टोकरशी दीमक आदि जन्तु और अग्निका उपद्रव न हो सके। शाहके लेखसे अधिक सहायता सी गई है, अतः ., १२५ वर्ग फीट जगहमें ६५+६५ फीटकी नीव पर उनका मामार मानता हूँ।
-सम्पादक