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अनेकान्त
वैशाख, वीर निर्वाण सं०२:४६५
में कार्य हुए इन शिला- जागते प्रमाण हैं । भट्टाकलंकदेव और श्रीविद्यानन्द जैसे बास भारस्यपादने धर्मराज्यका उद्धार बड़े बड़े प्रतिष्ठित प्राचार्योने अपने राजयार्तिकादि प्रयोंकिया-लोकमें धर्मकी पुनः प्रतिष्ठा की थी-सीसे में आपके वाक्योका-सर्वार्थसिद्धि प्रादिके पदोंकाप्रापसानों के अधिपति-बारा पूजे गये और 'पूज्य- खुला अनुसरण करते हुये बड़ी श्रद्धाके साथ उन्हें स्थान पाद मालाये । आपके विद्याविशिष्ट गुणोंको आज भी ही नहीं दिया बल्कि अपने अन्योंका अंग तक प्रापबारा उद्धार पाये हुए-रचे हुए-शास्त्र बतला बनाया है। दे। उनका खुला गान कर रहे हैं । श्राप जिनेन्द्रकी
जैनेन्द्र-व्याकरण तरह विश्वयुद्धिके धारक-समस्त शास्त्र विषयोंके पारं- शब्द-शास्त्र में आप बहुत ही निष्णात थे । आपका गत-ये और कामदेवको जीतनेवाले थे, इसीसे आपमें 'जैनेन्द्र' व्याकरण लोकमें अच्छी ख्याति एवं प्रतिष्ठा ऊँचे दर्जेके कल्य-मारको धारण करनेवाले योगियों- प्रात कर चुका है-निपुण वैयाकरणोंकी दृष्टिमें सूत्रोंके ने आपको ठीक ही 'जिनेन्द्रबुद्धि' कहा है । इसी लापवादि के कारण उसका बड़ा ही महत्व है और इसीशिलालेखमें पूज्यपाद-विषयक एक वाक्य और भी पाया
पाया
है
से भारतके आठ प्रमुख शान्दिकोंमें आपकी भी गणना जाता है, जो इस प्रकार है:
है कितने ही विद्वानोंने किसी प्राचार्यादिकी प्रशंसाश्रीपूज्यपादमुनिरप्रतिमौषध
में उसके व्याकरण-शास्त्रकी निपुणताको श्रापकी उपमा दिजीयादिदेहजिनदर्शनपतगात्रः। दी है। जैसा कि श्रवणबेल्गोल के निम्न दो शिलावाक्योंयत्पादधीतजलसंस्पर्शप्रभावात्
से प्रकट है:कालायसं किल तदा कनकीचकार ॥१७॥ "सर्वव्याकरणे विपश्चिदधिपः श्रीपूज्यपादः स्वयम् ।" इसमें पूज्यपाद मुनिका जयघोष करते हुए उन्हें
(शि० नं० ४७, ५०) अदितीय प्रौषध-ऋद्धिके धारक बतलाया है। साथ ही, "जैनेन्द्रे पूज्यपादः।" (शि० नं० ५५) यह भी प्रकट किया है कि विदेहक्षेत्र स्थित जिनेन्द्रमग- पहला वाक्य मेघचन्द्र विद्यदेवकी और दूसरा पान के दर्शनसे उनका गात्र पवित्र हो गया था और जिनचन्द्राचार्यकी प्रशंसामें कहा गया है। पहलेमें, मेघउनके चरण-धोए जलके स्पर्शसे एक समय लोहा भी चन्द्रको व्याकरण-विषयमें स्वयं 'पूज्यपाद' बतलाते हुए, सोना बन गया था।
पूज्यपादको 'अखिल-व्याकरण-पण्डितशिरोमणि' सचित इस तरह आपके इन पवित्र नामोंके साथ कितना किया है और दूसरेमें जिनचन्द्रके 'जैनेन्द्र'-व्याकरणही इतिहास लगा हुआ है और वह सब आपकी महती विषयक शानको स्वयं पूज्यपादका न बतलाया है, कीर्ति, अपार वित्ता एवं सातिराय प्रतिष्ठाका द्योतक और इस तरह 'जैनेन्द्र' व्याकरणके अभ्यासमें उसकी है। इसमें सन्देह नहीं कि श्रीपूज्यपाद स्वामी एक बहुत दक्षताको घोषित किया है। ही प्रतिभाशाली प्राचार्य, माननीय विद्वान् , युगप्रधान
इन्द्रश्चन्द्रः काराकृत्स्नपिशलीशाकटायनाः। और असमर्थ योगीन्द्र हुए है। आपके उपलब्ध पालिन्यमरजैनेन्द्रा जयन्त्यष्टौ च शाब्दिकाः॥ . अन्य निश्चय ही प्रापकी असाधारण योग्यताके जीते
-चातुपाठः।