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ॐ अहम्
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नीति विरोध-ध्वंसी लोक व्यवहार-वर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ।।
वर्ष २
सम्पादन-स्थान-चीर-सेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरसावा, निसहारनपुर
प्रकाशन-स्थान-कनॉट मर्कस, पो.ब.नं०४८, न्य देहली फाल्गुणशुक्ल, वीरनिर्वाण सं० २४६५, विक्रम सं० १६६५
.किरण "
समन्तभद्र अभिनन्दन .
कार्यादर्भेद एव स्फुटमिह नियतः सर्वथा कारणादरित्याये का तबादोद्वततरमतयः शाततामाश्रयन्ति । प्रायो यस्योपदेशादविवटितनया मानमूलादलंध्यात् स्वामी जीयात्म शश्वत्प्रथिततरयतीशोऽकलंकोरुकीतिः ।।
-अष्टमहरूयां, विद्यानन्दाचार्यः जिनक नर-प्रमागा-मूलक अलग उपदेशन-प्रवचनको मुनकर-महाउस नमति ययान्तवादीमा प्रायः शान्तकापातान है जो कारण कार्याधिकका सर्वथा भेदही नियन माना है अथवा यह नीकार करते है कि कारगा-कार्यादिक सर्वथा अभिन्न ी - क ही है-वे निमन तथा विशालकार्निग युन, अनि प्रति मनिराम स्वामी ममन्तभद्र सदा जयवन्त रह-अपने प्रपचनप्रभावंस बराबरलोक हृदयका प्रभारित करते रहें।