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तरुण- गीत
भगवत्स्वरूप जैन "भगवत्"
क्रान्ति - नर्त्तनमें ले आल्हाद,
उमंगों की त्राएँ लहरें ! हमारे शौर्य पराक्रम की,
पताकाएँ नभ में फहरें !! मिटे दुखितों का हाहाकार वीर ! भरदो फिर वह हुंकार !
端
पू
वीर ! भरदो फिर वह हुकार !
मचे अवनी पर धुआँधार !!
誠
服
等
शक्ति मय, बल-शाली जीवन, विश्व-मंदिर की शोभाएँ ! अहिंसा की किरणें पाकर ! प्रभाकर -तुल्य जगमगाएँ !!
नराधम - छलियों की सत्ता,
न जग में कहीं जगह पाए !
हमारे उर की मानवता
बहुत सो चुकी, जाग जाए !! सिखादे, कहते किसको प्यार ! वीर ! भरदो फिर वह हुंकार !
宾
霸
समाई कायरता मन में,
辉 !
रक्त का हुआ आज पानी ! मुर्दनी-सी मुँह पर छाई
लुट गई सारी मर्दानी !
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बाग़ फिर हो जाए गुलज़ार ! वीर ! फिर भरदो वह हुंकार !!
昕
न हो हमको प्राणों का मोह, न हम कर्तव्य विमुख जाएँ ! धर्म और देश-प्रेम-पुरित, सदा बलिदान - गान गाएँ !!
तभी हो जीने का अधिकार ! वीर ! मरदो फिर वह हुंकार !!
जीवित प्रति
हो उठे नव जीवन संचार !
वीर ! फिर भरदो वह हुंकार !!
编
昕
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बनें हम आशावादी सिंह,
अभय पुस्तक को सिखलाने ! बनाले अन्तरंग को सुदृढ,
लगे उद्यम पथ अपनाने !!
निराशा पर कर ज्रब-प्रहार !
वीर ! भरदो फिर वह हुंकार !!
新
昕
रूढियोंका दुखप्रद विश्वास - श्रृंखलाओंका पागल प्रेम ! भग्न हो सारा गुरुडम-वाददृष्टिगत हो समाज में क्षेम,
解
बनावट हीन, स्वच्छ व्यवहार ! वीर ! भरदो फिर वह हुंकार !!
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धर्म पर मर मिटने की साधहृदय में सदा फले फले न सुखमें, दुखमें संकटमें
हृदय उसको क्षण भर भूले
यही हो जीवन का शृंगार वीर ! भरदो फिर वह हुंकार !!
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