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वर्ष २, किरण ]
दक्षिणके तीर्थक्षेत्र
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कोस है और जिसमें चन्द्रप्रभा स्वामीको देवी ज्वाला- है, सात धनुषकी प्रतिमा है। यहाँसे भागे जैनोका राज्य मालिनी है।
है, पाँच स्थानोंमें अब भी है। तुल' (सुलुब) देश कनकगिरि ज्वालामालिनी, देवी चन्द्रप्रभस्वामिनी का बड़ा विस्तार है, लोग जिनाशाके अनुसार प्राचार
भागे शीलविजयी कावेरी नदीको पार करके मल- पालते हैं। याचलमें संचार करते हैं और अगनगिरिक स्थानमें भागे बदरी नगरी या मूडवित्रीका पर्शन है। जो विश्राम लेकर शान्तिनाथको प्रणाम करते हैं। वहाँ अनुपम है, जिसमें १६ मन्दिर हैं। उनमें बड़े-बड़े मंडप, चन्दनके बन है, हाथी बहुत होते हैं और भारी-भारी पुरुष प्रमाण प्रतिमायें हैं । वे सोनेकी हैं और बहुत सुन्दर सुन्दर वृक्ष हैं। फिर घाट उतरकर कालिकट बन्दर है। चन्द्रप्रभ, मादीश्वर, शान्तीरवर, पाके मन्दिर । पहुँचते हैं जहां श्वेताम्बर मन्दिर है और गुज्जर जिनकी भाषकजन सेवा करते हैं। जिनमती श्री राज्य (गुजराती) व्यापारी रहते हैं।
करती है । दिगम्बर साधु हैं। ग्रामण, क्षत्रिय, वैश्य और वहाँसे सौ कोसपर सुभरमणी'नामकामामहे । वहाँ- शूद्र चारों वर्ण के भाषक है। जातियोंका यही व्यवहार के संभवनाथको प्रणाम करता हूँ। फिर गोम्मटस्वामीपुर' है। मिभ्यादेवोंको कोई नहीं मानता । वाइपत्रोंकी
पुस्तकोंका भंडार है, जो वाँकी पेटियोंमें रहती है। सात सन् १४०० (वि०सं० १४५७) के एक शिला
धातुकी, चन्दनकी, माणिक, नीलम, वैड्र्य, हीरा और लेखसे मालम होता है कि शुभचन्द्रदेवके शिष्य
विद्रुम (मूंगा) रत्नोंकी प्रतिमायें हैं । बड़े पुण्यसे इनके चन्द्रकीर्तिदेवने इस पर्वतपर चन्द्रप्रभस्वामीकी प्रतिमा
दर्शन किये। स्थापित की । शीलविजयजीने शायद इन्हीं चन्द्रप्रभस्वामीका उल्लेख किया है।
आगे कारकल प्राममें नौपुरुष उंची गोम्मटस्वामीकी यह अंजनगिरि कुर्ग (कोडगु ) राज्यमें है। ३ यात्रीके कथमानुसार उस समय तुलदेशमें इस समय भी वहाँ शान्तिनाथका मन्दिर मौजूद है। कई छोटे-छोटे राज्य थे। जैसे अजिल, चौट, बंग, यहाँ शक १४६६ का एक कनड़ीमिश्रित संस्कृत मुल आदि। शिलालेख मिला है, जिसमें लिखा है, कि अभिनव- दक्षिण कनाडा जिला तुलुदेश कहलाता है। चारुकीर्ति पंडितने अंजनगिरिकी शान्तिनाथबस्तीके अब सिर्फ वहाँपर तुल भाषा बोली जाती है। पहले दर्शन किये और सुवर्णनदीसे पाई हुई शान्तिनाथ उत्तर कनाडाका भी कुछ हिस्सा तुलु देशमें गर्भित और अनन्तनाथकी मूर्तियोंको विराजमान किया। था। शीलविजयजीके समय तक भी तुलु देसमें कई
१ सुभरमणी शायद 'सुब्रमण्य' का अपमेश नाम जैन राजा थे। कारकलके राजा भैरस मोरियरने जो है। यह हिन्दुओंका तीर्थ है । यह तुलुदेशके किनारे गोम्मट देवीके पुत्र थे. ई० स० १५० से १५६% तक पाचिम घाटके नीचे विद्यमान है।
राज्य किया है । ये बैन थे। .. २ गोम्मटस्वामीपुर शायद यही है जो मैसूरसे .नातितलो ग्रहण विवहार, नियादेवतो पश्चिमकी ओर १६ मीलकी दूरीपर जंगलमें है और परिहार । ८३ । 'हज' का अर्थ यह ही होता है, वहाँ गोम्मटस्वामीकी १५ हाथ ऊँची प्रतिमा है। परन्तु 'यही व्यवहार' क्या सो कुछ सा नहीं होता।