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वर्ष २, किरण ७ ]
तीर्थ है
दक्षिण के तीर्थक्षेत्र
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चित्रगढ़ बनोसी गाम, बंकापुर दीठु सुभधाम । तीरथ मनोहर विस्मयवन्त,.......
फिर दशवें दिन दर्शन करो । इस पर भावकोंने नौ दिन ऐसा ही किया और नवें दिन ही देख लिया तो उन्होंने उस शंखको प्रतिमारूप में परिवर्तित पाया परन्तु
आगे यात्रीजीने लक्ष्मेश्वरपुर तीर्थ की एक अपूर्व प्रतिमाके पैर शंखरूप ही रह गये, अर्थात् यह दशवें दिन बात इस तरह लिखी हैकी निशानी रह गई । शंखमेंसे नेमिनाथ प्रभु प्रगट हुए. और इस प्रकारक शंख परमेश्वर कहलाये । इसके बाद शील विजयजी गदकि', राय
स्वामी सेवकने अर्थात् किसी यक्षने श्रावकोंसे कहा कि नौ दिन तक एक शङ्खको फलोंमें रक्खो और वर्ष (८५१-६६.) के सामन्त 'बंकेयेरस' ने इसे अपने
नामसे बसाया था ।
हुथेज़ी', और रामराय के लोकप्रसिद्ध बीजानगर में होते हुए ही बीजापुर श्राते हैं। बीजापुर में शान्ति जिनेन्द्र और पद्मावती के दर्शन किये, यहाँके भावक बहुत धनी गुणी और मणियों के व्यापारी हैं। ईदलशाहका " बल वान राज्य है, जो बड़ा 1 जा-पालक है और जिसकी सेनामें दो लाख सिपाही हैं ।
+ लक्ष्मेश्वर धारवाड़ जिलेमें मिरजके पटवर्धनकी जागीरका एक गाँव है । इसका प्राचीन नाम 'पुलिगरे' है। यहाँ शंस बस्ति नामका एक विशाल जैनमन्दिर है जिसकी छत ३६ खम्भोंपर थमी हुई है, यात्रीने इसीको 'शंख- परमेश्वर' कहा जान पड़ता है इस शंखवस्तिमें छह शिलालेख प्राप्त हुए हैं । शक संवत् ६५६के लेखके अनुसार चालुक्य नरेश विक्रमादित्य (द्वितीय) ने पुलिगेरेकी शंखतीर्थ वस्तीका जीर्णोद्धार कराया और जिनपजाके लिए भूमि दान की । इससे मालूम होता है कि उक्त बस्ति इससे भी प्राचीन है । हमारा अनुमान है कि अतिशय क्षेत्र कांडमें कहे हुए शंखदेवका स्थान यही है----
पासं सिरपुर बंदमि होलगिरी संखदेवम्मि । जान पड़ता है कि लेखकोंकी अज्ञानतासं 'पुलिगेरि' ही किसी तरह 'होलगिरि' हो गया है। उक्त पंक्तिकं पूर्वार्धका सिरपुर (श्रीपुर) भी इसी धारबाड़ जिलेका शिरूर गाँव है जहाँ का शक संवत् ७८७ का एक शिलालेख ( इन्डियन ए० भाग १२, पृ० २१६ ) प्रकाशित हुआ है । स्वामी विद्यानन्दका श्रीपुर पार्श्वनाथ स्तोत्र संभवतः इसी श्रीपुरके पार्श्वनाथको लक्ष्य करके रचा गया होगा ।
१ धारवाड़ जिलेकी गदग तहसील । २ हुबली जिला बेलगाँव ।
३-४ विजयनगरका साम्राज्य तालीकोटकी लड़ाई में सन् १५६५ में मुसलमानों द्वारा नष्ट हो गया और रामरायका बध किया गया । यह वहाँका अन्तिम हिन्दू राजा था । इसके समय में यह साम्राज्य उच्चतिके शिखर पर था । यात्रीके समयके कुछ बरसों बाद पेा विजय रामरायने पोतनरसे राजधानी हटाकर विजयनगरमें स्थापित की थी ।
५ सन् १६८३ के लगभग जब शीलविजयजीने यह यात्रा की थी, बीजापुरकी आदिलशाही दुर्दशाप्रस्त थी । उस समय अली आदिलशाह (द्वि०) का बेटा सिकन्दर आदिलशाह बादशाह था 1 औरङ्गजेबकी चढ़ाईयाँ हो रही थीं । १६८४ में शाहजादा आजमशाहको उसने बीजापुरकी चढ़ाईपर भेजा था । १६८६ में सिकन्दर कैद हो गया और १६८६ में उसकी मृत्यु हो गई ।