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________________ तरुण- गीत भगवत्स्वरूप जैन "भगवत्" क्रान्ति - नर्त्तनमें ले आल्हाद, उमंगों की त्राएँ लहरें ! हमारे शौर्य पराक्रम की, पताकाएँ नभ में फहरें !! मिटे दुखितों का हाहाकार वीर ! भरदो फिर वह हुंकार ! 端 पू वीर ! भरदो फिर वह हुकार ! मचे अवनी पर धुआँधार !! 誠 服 等 शक्ति मय, बल-शाली जीवन, विश्व-मंदिर की शोभाएँ ! अहिंसा की किरणें पाकर ! प्रभाकर -तुल्य जगमगाएँ !! नराधम - छलियों की सत्ता, न जग में कहीं जगह पाए ! हमारे उर की मानवता बहुत सो चुकी, जाग जाए !! सिखादे, कहते किसको प्यार ! वीर ! भरदो फिर वह हुंकार ! 宾 霸 समाई कायरता मन में, 辉 ! रक्त का हुआ आज पानी ! मुर्दनी-सी मुँह पर छाई लुट गई सारी मर्दानी ! 356 बाग़ फिर हो जाए गुलज़ार ! वीर ! फिर भरदो वह हुंकार !! 昕 न हो हमको प्राणों का मोह, न हम कर्तव्य विमुख जाएँ ! धर्म और देश-प्रेम-पुरित, सदा बलिदान - गान गाएँ !! तभी हो जीने का अधिकार ! वीर ! मरदो फिर वह हुंकार !! जीवित प्रति हो उठे नव जीवन संचार ! वीर ! फिर भरदो वह हुंकार !! 编 昕 骂 बनें हम आशावादी सिंह, अभय पुस्तक को सिखलाने ! बनाले अन्तरंग को सुदृढ, लगे उद्यम पथ अपनाने !! निराशा पर कर ज्रब-प्रहार ! वीर ! भरदो फिर वह हुंकार !! 新 昕 रूढियोंका दुखप्रद विश्वास - श्रृंखलाओंका पागल प्रेम ! भग्न हो सारा गुरुडम-वाददृष्टिगत हो समाज में क्षेम, 解 बनावट हीन, स्वच्छ व्यवहार ! वीर ! भरदो फिर वह हुंकार !! 46 धर्म पर मर मिटने की साधहृदय में सदा फले फले न सुखमें, दुखमें संकटमें हृदय उसको क्षण भर भूले यही हो जीवन का शृंगार वीर ! भरदो फिर वह हुंकार !! 15
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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