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भगवती आराधना और शिवकोटि
[ले०-५० परमानन्दजी शास्त्री] उपलब्ध जैन साहित्य में 'भगवती आराधना' नाम- वाला दुसरा ग्रन्थ दिगम्बर जैन समाजमें उपलब्ध नहीं
का ग्रन्थ बड़ा ही महत्वपूर्ण है और वह अपनी खास है। हां, इतना ज़रूर मालम होता है कि इससे पहले विशेषता रखता है । ग्रन्थका प्रतिपाद्य विषय बड़ा रोचक भी जैन समाजमें श्राराधना-विषयके कुछ अन्य मौजूद तथा हृदयग्राही है। इसमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, ये उन्हीं परसे शिवार्यने इस प्रन्यकी रचना की है, और सम्यक्चारित्र और सम्यक्तप नामकी चार बाराधनाओं- यह बात प्रन्थमें पूर्वाधारको व्यक्त करने वाले 'पुण्याका वर्णन किया गया है, जो मोक्षको प्राप्त करनेमें यरियणिबदा' जैसे पदोंसे भी साफ. ध्वनित है। समर्थ होने के कारण 'भगवती' कहलाती है और इसलिये ग्रन्थके अन्तमें बालपण्डित-मरणका कथन करते विषयानुरूप ग्रन्थका भगवती आराधना नाम उपयुक्त हुए, देशयती-श्रावक-के प्रतोंका भी कुछ विधान प्रतीत होता है। यह ग्रन्थ खासकर मुनियोंको लक्ष्य किया है और वह इस प्रकार है:करके लिखा गया है । वास्तवमें मुनिधर्मकी और पंच य अणुव्वदाई सत्त य सिक्खाउ देसजदिधम्मो । श्रावकधर्मकी भी अधिकांश सफलता सल्लेखना या सबेण य देसेण य तेण जुदो होदि देसजदी ।। समाधिपूर्वक मरण करनेमें अर्थात् शरीर और कषायोंको पाणिवधमुसावादादत्तादाणपरदारगमणेहि । कश करते हुए शान्तिके साथ अपने प्राणोंका त्याग अपरिमिदिच्छादो वि य अणुव्ययाई विरमगाई। करनेमें है। इसी कारण इस ग्रन्थमें सल्लेखनामरणके जंच दिसावेरमणं प्रपत्थदंडेहि जब वेरमा । भेद-अभेदों और उनके योग्य साधन-सामग्री प्रादि- देशावगासियं वि य गुणबयाई भवेताई ।।. का कितना ही विस्तृत वर्णन किया गया है। बारा- भोगावं परिसंखा सामाइयमति हि संविभागोय। धनाके विषयको इतने अच्छे दंगसे प्रतिपादन करने पोसहविधी य सव्यो चदुरो सिक्खाउ कुत्तानी।