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अनेकान्त
[चैत्र, वीर-निर्वाण सं०२४६५
जह.जब जइ भोगे तह तह भोगेसु बड्ददे तरहा। कार्तिकेयके पिताका नाम अग्नि नामक राजा दिया है
-भग. पा. गा. १२६२ और कार्तिकेयानुप्रेक्षाकी ४८७ नं०की गाथा में 'सामितृष्णाषिः परिदहन्ति न शान्तिरासा
कुमारेण पदके द्वारा उसके रचयिताका नाम जो स्वामिमिष्टेन्द्रियार्थविभवैः परिवृद्धिरेव। . कुमार दिया है। उसका अर्थ संस्कृत-टीकाकार शुभ
-गृहत्स्वयंभूस्तोत्र, ८२। चन्द्रने 'स्वामिकार्तिकेयमुनिना आजन्मशीलधारिणा' बाहिरकरणविसुदी भभंतरकरणसोधणत्थाए ॥ किया है। इसके सिवाय, अन्य किसी कार्तिकेय मुनि
-भग० प्रा० १३४८ का नाम भी जैन साहित्यमें उपलब्ध नहीं होता, जिससे बाचं तपः परमदुश्चरमाचरंस्त्व-
आराधनामें प्रयुक्त हुए अग्निराजाके पुत्र कार्तिकेयको माध्यात्मिकस्य तपसः परिवृहणार्थम् ।।
कार्तिकेयानुप्रेक्षाके कर्तासे मिन्न समझा जा सके। -बृहत्स्वयंभूस्तोत्र, ८३। ऐसी हालतमें, यदि सचमुच ही यह अनुप्रेक्षा ग्रन्थ इनके अतिरिक्तरत्नकरण्डश्रावकाचारके सल्लेखना- उक्त गाथा-वर्णित अग्निपुत्र कार्तिकेयके द्वारा रचा गया विषयक 'उपसर्गे दुर्भिक्षे' इत्यादि पद्यकी प्रायः सभी है तो यह कहना होगा कि 'भगवती अाराधना' ग्रन्थ बातोंका अनुकरण इस ग्रन्थकी गाथा २०७३, ७४ में कार्तिकेयानुप्रेक्षाके बाद बनाया गया है। परंतु कितने किया गया है। इससे ग्रन्थकारमहोदय प्राचार्य कुन्द- बाद बनाया गया, यह अभी निश्चित रूपसे कुछ भी कुन्द तथा उमास्वाति के बाद ही नहीं किंतु समन्तभद्रके नहीं कहा जा सकता तो भी यह निःसंकोच रूपसे कहा भी बाद हुए जान पड़ते हैं।
जा सकताहै कि इस प्रथकी रचना प्राचार्य समंतभद्र भगवती अाराधनामें १५४६ नं. पर एक गांथा और पूज्यपादके मध्यवती किसी समयमें हुई है। क्योंकि निम्न रूपसे पाई जाती है:
बालोचनाके दश दोषोंके नामोंको प्रकट करनेवाली इस रोहेडयम्मि सत्तीए हमओ कोंचेण अग्गिदइदो वि॥ ग्रंथकी निम्न गाथा २०५६२ तत्त्वार्थसूत्रके हवं अध्यातं वेयामधियासिय परिवरणो उत्तमं अट्ठ॥ यके २२वें सूत्रकी व्याख्या करते हुए पूज्यपादने अपनी
इसमें बताया गया है कि रोहेड नगरके क्रोच नाम- सर्वार्थसिद्धि में 'उक्तं च' रूपसे उद्धत की हैके राजाने अग्नि नामक राजाके पुत्रको शक्तिशस्त्रसे भाकंपिय अणुमाणिय जं दिट्ठबादरं च सुहुमं च । मारा था और उन अग्निपुत्र मुनिराजने उस दुःखको छएणं सदाउलयं बहुजणअन्वत्त तस्सेवी॥ साम्यभावसे सहनकर उत्तमार्थकी प्राप्ति की थी। पं० इसके सिवाय, आचार्य पूज्यपादने 'सर्वार्थसिद्धि' में
आशाधरजीने 'मूलाराधनादर्पण' में इस गाथाकी इस आराधना ग्रंथ परसे और भी बहुत कुछ लिया है, व्याख्या करते हुए अग्नि नामक राजाके पुत्रका नाम जिसका एक नमूना नीचे दिया जाता है'कार्तिकेय' लिखा है, अकलंकदेवने तत्त्वार्थराजवार्तिक' "निक्षेपश्चतुर्विधः अप्रत्यनिक्षेपाधिकरणं दुष्पमें महावीरतीर्थमें दारुण उपसर्ग सहनेवाले दश मुनियों मृष्टनिक्षेपाधिकरणं, सहसा निक्षेपाधिकरणमनाभोगके नामोंमें कार्तिकेयका भी नाम दिया है, आराधना निक्षेपाधिकरणं चेति । संयोगो द्विविधा भकपानकथाकोषकी ६६वीं कार्तिकेयस्वामीकी कथामें भी संयोगाधिकरणमुपकरणसंयोगाधिकरणं चेति ।