________________
३०८
भनेकान्त
[ फाल्गुण, वीर-निर्वाण सं० २४६५
नहीं निकला । सदाचारकी अनुपस्थितिमें अनिश्चितवाद- तथा सुख दुखका कर्ता मान कर उनका में समाजके सामने कोई आधारशिला समाजकी पूजन भी शुरू कर दिया, परन्तु फिर भी हिन्दूव्यवस्थाको कायम रखने को नज़र नहीं आती थी। धर्म बाजी मार लेगया । छठी शताब्द। के महान पंडित राज्याश्रयों में दुर्बलताके कारण फिर सनातन धर्मी तथा 'प्रमागा-समुच्चय' के प्रणेता दिग्नाग-जैसे अपने प्राचीन जागृति सामने आगई।
पंथ पर दृढतामे कायम रहनेवाले महान् बौद्ध भी ईश्वर । हूग लोगोंने गुप्त राज्यको नष्ट भष्ट कर ही दिया कृष्ण द्वारा विहार जलाए जाने पर इस धर्मके अपकर्षथा, व अशान्ति फैल ही रही थी। हर्ष-वर्धन-जैसे में अधिक समय तक हाथ न लगा सके । सौत्रान्तिक. राजाने बौद्ध तथा हिन्दू दोनों धर्मोका मत्कार किया, शाखाके सम्पादक कुमारलब्धने भी माथा टेक दिया जबकि वह बौद्ध था । गुप्त राजाओंके ज़माने में हिन्दू- और अश्वघोपकी प्रतिभा भी प्रवाहको न बांध सकी। धर्मका पुनरुद्धार पहिले ही शुरू होगया था, जिस समा- तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, ओदन्तपुरी और ध.यनता की तीन धारा तथा हिमाके प्रति घणा बौद्ध-धर्मने कुटी के महान विद्यालय भी काफी तादाद में इतने महान जाग्रत की थी, उसे सनातन धर्मने भी ग्रहणकर वैष्णव- पुरुष तैयार नहीं कर सके जो इस धर्मको जैसे तैसे १२ धर्ममें सम्मलित कर दिया। इसलिए हिन्दू धर्मको वैष्णव वीं शताब्दीसे आगे ले जाते, जबकि बख्तयार खिलजीशाखा सार्वजनिक धर्म के रूपमे समाज की समस्या हल ने विक्रमशिला व श्रीदन्तपुरीके महान पुस्तकागार तथा करनेको सामने आई।
विहार अग्नि समर्पित कर दिये ! राजगृह तथा वैशाली में ___ जिस बौद्ध-धर्मने नागार्जुन, गुणमति, चन्द्रपाल, बड़े बड़े उत्सव हुए, पर ये सारी बातें इस धर्मको भारतशानचन्द्र, प्रभामित्र, स्थिरमति धर्मपाल, शीलबुद्ध, जिन- वर्षमें सुरक्षित न रख सकी। प्रयास तथा क्रान्तिमें भी मित्र आदि जैसे विशेषज्ञांका नालन्दविश्व-विद्यालयमं मामनेकी समस्याका हल पधान था व जहां कुछ हद तक की संस्कृति में जन्म दिया और जिस विश्वविद्यालयने होगया वहां उस धर्मका महत्व भी गिर गया। जैनधर्म छटवां सदीमें शीलभद्र जैसे सौ वर्षमे भी अधिक भी उमी भएईको उठाकर खड़ा हुआ था जो कुछ जीवित रहने वाले अधिष्ठाताको जन्म दिया. जिम- ममयको भगवान बुद्धके भी हाथों में रहा। के हाथके नीचे १५०० अध्यापक और १०.... - जैनदर्शनमें वह अधूरापनका दोष नहीं लग सकता अधिक विद्यार्थी जो हर तरहसे निःशुल्क पढ़ते थे, तथा जो कि बौद्धदर्शनके सम्बन्धमें लगाया जाता था। जैनजिसके वर्षों चरणचुम्बनभं ह्म नत्मांग जैसे प्रसिद्ध चीनी यतियोंने शिक्षणका कार्य अपने जिम्मे ले समाजके परिव्राजकने अपना अहोभाग्य समझा और जिसने अपने अन्तस्तलके निकट पहुँचनका बड़ा प्रेमयुक्त प्रयत्न गुरु धर्मपाल के समक्ष ही मगध राज्यमें विख्यात् ऐतिहा- किया था, यहां तक कि उनका "ॐ नमः सिद्धम्" सिक विजय प्रात की, ऐसी महान आत्माके रहते हुए भी जैनेतर जैसा मालूम होने लगा था। राजस्थानमें इम भारतकी जनताके हृदय पर बौद्ध-धर्म भासन न धर्मके प्रचारका कारण था वैष्णवोंकी विचार विराटता. जमा सका।
का जैनधर्मसे समीकरण। जैनधर्मकी हिंसामं मनम्यन्यत. महायान पन्यनं भगवान बुद्धको अवतार वचस्यन्यत्का प्रश्न नहीं था। प्रचार के लिये जैनधर्मने