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अनेकान्त
[चैत्र, वीर-निर्वाण सं०२४६॥
है! अधीनस्थकी रक्षाका भार मेरे कन्धों पर है!...सुनो, तो कभी बुरा न कहेंगे !...' अगर मैं आज नारीत्वकी रक्षा करती हूँ तो उसका स्पष्ट काश! आज अगर हमारा हृदय महाराजकी अर्थ यही होता है कि मैं अपने कर्तव्यको ठुकराती हूँ! नाराजीके डरसे न भरा होता तो-इन पवित्र विचारोंका प्रजाके साथ विश्वास-घात करती हूँ ! और आँखों देखते मुक्त-कराटसे स्वागत किया होता!...धन्य हो देवी! एक स्वदेशको अनधिकारियोंके हाथ लुटने देती हूँ !...मेरा भारतीय-महिलाके लिए यही शोभा है ! अबलाके कलंक निश्चय है कि-.........'
को सबला बन कर मिटाना ही उनका ध्येय है! ___ महारानी अपना निश्चय प्रगट करें इसके पहिले तो उठो, आज़ादीकी रक्षाके लिए अपने बल, प्रधान सचिवने कुछ कहना मुनासिब समझा ! बातको अपने पौरुष, और अपनी साहसिकताका परिचय दो! तोड़ते हुए जरा गंभीर मुद्राके साथ वह बोले-... महाराज जिन विचारोंको अधिक तरजीह देते हैं उनके बावजद में खयाल करता हूँ कि आप खामोश बैठे तो कुछ दिन बादज्यादह मुनासिब-बात होगी ! और समर-भूमिमें हमारी दिग्विजयकी दुन्दुभीबजाते हुए महाराज-मधुक लौटे ! मौज जी-जान से, वफादारीसे लड़ेगी इसका मुझे पूरा सूनी-सी अयोध्या लह-लहा उठी ! प्रत्येक भवन श्रानन्द विश्वास है!....
नादसे प्रकम्पित हो उठा ! सब ओर खुशीका साम्राज्य महारानीने खिन्न-भावसे बातें सुनी ! मुख पर एक छा गया ! राज्य-भक्ति उमड़ पड़ी ! महाराज राज-महल उदासीकी रेखा-सी खिंच गई! यह क्षण-भर चुप रहीं: पहंचे ! स्वयं भी उन्हें कम प्रसन्नता न थी! वह अपनी फिर
विजय पर मुग्ध ये!'पर...श्राप यह तो सोचिए---अगर कहीं विजय 'महाराजकी जय हो !'-दरबारियोंने अभिवादन लक्ष्मी उधर गई तो...? तब मुझे मर्मान्तक पश्चाताप किया।
श्राप कह सकते हैं?-स्वदेशकी स्या दशा महाराज सिंहासनासीन हए! कशल-क्षेमोपरान्त, होगी?--महाराज लौटकर भी 'महाराज' कहला सकेंगे? राज्य-समाचार दर्याफ्त किए गए!x x x x जवाब दीजिए न इन बातों का !...एक ओर नारीत्व हूँ ! ऐसी बात १...अच्छा फिर...?'-महाराजने है, दूसरी ओर कर्तव्य, कठोर-कर्तव्य ! देशका प्रतिनिधित्व साश्चर्य पछा ! गुरुतर-उत्तरदायित्व !!...एक ओर मैं गुलाम हूँ, दूसरी '...समीप ही था कि राज-सिंहासन पर शत्रुओंका मोर राष्ट्र-का राष्ट्र मेरा सेवक ! बतलायो-मुझे अपनी अधिकार हो जाता और...!'--प्रधान सचिवने उत्तर गुलामीकी रक्षा करनी चाहिए या अपने प्राधीनोंकी १ दिया। '... यह तो ठीक है ! लेकिन......!-
तो फिर लड़ाई छिड़ी, और उसमें तुम्हारी जीत 'लेकिन...फिर ठीक' के साथ 'लेकिन' बे-सूद है! हुई ! क्यों यही न ?' स्वतंत्रताके रणांगणमें नारीत्वका बलिदान चढ़ाना भी हाँ ! महाराज!' उचित ही है इसे महाराज यदि लम्बे-दृष्टिकोणसे देखेंगे 'मैं तुम्हारी बीरताकी प्रशंसा करता हूँ ! संकटके