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LEE , तत्वचची
अन्तरद्वीपज मनुष्य
_ [मम्पादकीय]
नुष्योंके कर्मभमिज आदि चार भेदोंमें 'अन्तरद्वीपज' पश्चिम दिशामें 'पतिमानप' भी बाम करते हैं, जिनके
भी एक भेद है। अन्तरद्वीपोंमें जी उत्पन्न होते हैं उन्हें पक्षियोंकी तरह पगंका होना जान पड़ता है। यथाः'अन्तरद्वीपज' कहते हैं । ये अन्तरद्वीप लवणोदधि तथा कालोदे दिशि निश्चेयाः प्राच्यामुदकमानुपाः । कालोदधि समुद्रोंके मध्यवर्ती कुछ टाप है, जहां कुमानुपा- अपाच्यामश्वकर्णास्तुप्रतीच्या पक्षिमानुपाः ।। ५.५६७।। को उत्पत्ति होती है और इमीम इन द्वीपोंको 'कुमानपदीप'
-हरिवंशपुराणे, जिनसेनः भी कहते हैं, जैसा कि निलोयपएणती (विनोकप्रशमि) के अपनी सी ऐसी विचित्र प्राकृनियों और पशुश्रांक निम्न वाश्याम प्रकट है
ममान जीवन व्यतीन करने के कारण वे लोग 'कुमानुप' "कुमाणसा होनि तराणामा ।" कहलाते हैं । अपजिनमृरिने,जो कि विक्रमकी प्रायः ७वीं "दीवाण कुमाणसहि जनाणं ।।" या ८ वीं शताब्दीक विद्वान हैं. भगवनी अाराधनाकी
-अधिकार ४ था __गाथा नं. ७८१ की टोकामें इन कुमानपोंकी श्राकृति इन द्वीपोंमें उत्पन्न होनेवाले मनुष्योकी प्राकृति श्रादिका कुछ वर्णन देते हुए इन्हें माफ़तौर पर मनुष्याय पर्गरूपसे मनुष्यों-जैनी नहीं होनी-मनुष्याकृतिक माथ को भोगने वाले, कन्द-मूल फलाहारी और मृगोपमचेष्टित पशुश्रांकी प्राकृतिके मिश्रणको निये हुए होती है । ये निग्या है। यथा--- मनुष्य प्रायः नियंचमुन्व होने हैं-कोई अश्वमग्य है, इत्येवमादयो ज्ञया अन्तरद्वीपजा नराः॥ कोई गजमुग्य, कोई वानरगुन्ध इत्यादि किन्हीं के मांग है, समुद्रीपमध्यस्थाः कन्दमलफलाशिनः । किन्हींक पंछ और कोई एक ही जंघावाले होते हैं । अपने चंदय ते मनुप्यायुस्ले गूगोयमचंटिताः॥ इम श्राकृतिभेदके कारण ही उनमें परस्पर भेद है- 'मग पमचेटिन' विशेषगमे यह स्पष्ट माना जाना है एक अन्तरद्वीप में प्रायः एक ही श्राकृतिक मनाय निवाम किये हो। प्रायः पशुओं के समान जीवन व्यतीत करते हैं । कालोदधिको पूर्वदिशाम को 'उदकमानुप' भी करने वाले होते हैं। रहते हैं, जिन्हें जलचर मनुष्य नमझना चाहिये और श्रीनटा मिदनन्धाचार्य, जो रिक्रमकी प्रायः यां