________________
सम्यकपण
सकाम धर्मसाधन
[सम्पादकीय ]
लौकिक फलकी इच्छाओंको लेकर जो धर्मसाधन नहीं हुई। ऐसे लोगोंके समाधानार्थ-- उन्हें उनकी
किया जाता है उसे 'सकाम धर्मसाधन' कहते भूल का परिज्ञान करानेके लिए ही यह लेख लिखा है और जो धर्म वैसी इच्छाओंको साथमें न लेकर, मात्र जाता है, और इसमें प्राचार्य वाक्यों के द्वारा ही विषयअपना आत्मीय कर्तव्य समझकर किया जाता है को स्पष्ट किया जाता है। उसका नाम 'नि काम धर्मसाधन' है। निष्काम धर्म- श्री गुगाभद्राचार्य अपने 'प्रात्मानुशासन' ग्रन्थ में साधन ही वास्तवमें धर्मसाधन है और वही धर्मके लिखते हैंवास्तविक-फलको फलता है । सकाम धर्ममाधन संकल्प्यं कल्पवृक्षस्य चिन्त्यं चिन्तामणेरपि । धर्म की विकृत करता है, सदोष बनाता है और उमसे असंकल्यमसंचिन्त्यं फलं धर्मादवाप्यते ॥ २२ ॥ यथेष्ट धर्म-फलकी प्राप्ति नहीं होसकती । प्रत्युत इसके, अर्थात्-फलप्रदानमें कल्पवृक्ष संकल्पकी और अधर्मकी और कभी कभी घोर पाप-फलकी भी चिन्तामणि चिन्ताकी अपेक्षा रखता है-कल्पवृक्ष प्राप्ति होती है। जो लोग धर्मके वास्तविक स्वरूप बिना संकल्प कियं और चिन्तामणि बिना चिन्ता किए और उसकी शक्ति से परिचित नहीं, जिनके अन्दर धैर्य फल नहीं देता; परन्तु धर्म वैसी कोई अपेक्षा नहीं नहीं, श्रद्धा नहीं, जो निर्बल हैं... कमज़ोर हैं, उतावले रखता-वह बिना संकल्प किए, और बिना चिन्ता हैं और जिन्हें धर्मके फलपर पूरा विश्वाम नहीं, किए ही फल प्रदान करता है। . ऐसे लोग ही फल-प्राप्तिमें अपनी इच्छाकी टांग अड़ा जब धर्म इस प्रकार स्वयं ही फल देता है और कर धर्मको अपना कार्य करने नहीं देत-उसे पंगु फल देनेमें कल्पवृक्ष तथा चिन्तामणिकी शक्तिको और बेकार बना देते हैं और फिर यह कहते हुए भी मात ( परास्त ) करता है, तब फल-प्राप्ति के लिए नहीं लजाते कि धर्म-साधनसे कुछ भी फलकी प्राप्ति इच्छाएँ करके-निदान बांधकर - अपने प्रात्माको