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अनेकान्त
[माघ, वीर-निर्वाण सं० २४६५
__ प्राचार्यपद
करें। आप भेरी सभाके लिये सूर्य -समान सिद्ध होंगे । आचार्य देवचन्द्रसूरिने इस प्रकार आपकी सिद्ध उस दिनसे आचार्य श्री राजाकी विद्वत-सभाको शुशोसारस्वता और अन्य शुभ लक्षणोंको देखकर आपको भित करने लगे । शनैः शनैः दिन प्रति दिन राजाकी आचार्य पदवी प्रदान करनेका कल्याणप्रद निर्णय हमारे चरित्र नायकके प्रति अनन्य भक्ति और असाकिया। तदनुसार संवत् ११६६ वैसाख शुक्ला तृतिया धारण श्रद्धा बढ़ने लगी। तत्कालीन सभी जैन और (इक्ष-तृतीया ) के दिन मध्याह्नकाल में खंभात शहर में जैनेतर लब्धप्रतिष्ठित विद न आचार्य हेमचन्द्रकी प्रतिभा चतुर्विध संघके सामने आचार्य-पदवी प्रदान की और का लोहा मानते हुए अपनी अपनी विद्वत्ता को उनकी "आचार्य हेमचन्द्र सूरि" नाम ज़ाहिर किया । इस समय अद्वितीय विद्वत्ता के आगे हीन-कोटि की समझने लगे सोमचन्द्रसूरि उर्फ हेमचन्द्रसूरिकी आयु केवल २१ थे । यही कारण है कि सिद्धराज जयसिंहने जब राज्यवर्षकी ही थी।
सभा में नवीन संस्कृत-व्याकरणको रचनाका प्रस्ताव हमारे चरित्र-नायककी पूज्य माताजीने भी दीक्षा लेली रक्खा तो सभी विद्वानों की दृष्ठि एक साथ प्राचार्य थी। इस अवसर पर उन्हें भी साध्वी-वर्ग में "प्रवर्तिनी" हेमचन्द्र पर पड़ी। सभीने अपनी अपनी असमर्थता जैसा पवित्रपद प्रदान किया गया। यह आचार्य हेमचन्द्र- प्रगट करते हुए एक स्वरसे यही कहा कि इस पवित्र की असाधारण मातृ भक्तिका ही सुन्दर परिणाम था। और आदर्श कार्यका भार केवल आचार्य हेमचन्द्रही
आचार्य हेमचन्द्र खंभातसे विहार करके विविध सहन कर सकते हैं। अन्य किसीमें इस कार्यको स्थानोंको पवित्र करते हुए गुजरातकी राजधानी पाटणमें पूर्ण करने के लिए न तो इतनी प्रतिभा ही है और न पधारे उससमय वहांके शासक सिद्धराज जयसिंह थे। ___एक दिन मार्गमें हाथी पर बैठकर जाते हुए राजा गुजरातका प्रधान व्याकरण की दृष्टि प्राचार्य हेमचन्द्र पर पड़ गई । लक्षणोंसे 'अन्तमें आचार्य हेमचन्द्रने सिद्धराज जयसिंहके उसे ये महाप्रतापी नर-शार्दल प्रतीत हुए । तत्काल विनयमय आग्रहसे सुन्दर, प्रासादगुणसंपन्न, प्राञ्जल हाथी उनके समीप लेगया और हाथ जोड़कर बोला कि और लालित्यपूर्ण संस्कृत भाषामें सर्वाङ्गसम्पन्न वृहत् हे महाराज ! कृपया मेरे योग्य सेवा फरमाइये । आचार्य व्याकरणकी रचना की। व्याकरणका नाम “सिद्ध हेम" श्रीने काव्यमय उत्तर दिया कि "हे राजन् ! अपने इस रस्खा गया । "सिद्ध' से त त्पर्य सिद्धराज जयसिंह है दिग्गजको आगे-आगे चलाता ही जा; पृथ्वीकोधारण करने और "हेम" से मतलब आचार्य हेमचन्द्र है । वाले दिग्गज भले ही व्याकुल हों, क्योंकि वास्तवमें इस व्याकरणमें ८ अध्याय हैं। प्रथम सात अध्याय पृथ्वीका भार तो तुम्हीने अपने विशाल कंधों पर धारण में संस्कृत भाषाका व्याकरण है और शेष आठवें में कर रखा है । अतः दिग्गजों की परवाह कौन करता प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिकाशाची है।" चतुर और मर्मज्ञ राजा काब्य चमत्कृतिपूर्ण उत्तर और अपभूश इन ६ भाषाओंका व्याकरण है। प्रथम सुनकर परम संतुष्ठ हुआ और विनय पूर्वक निवेदन किया सात अध्यायोंकी सूत्र-संख्या ३५६६ है और आठवेंकी कि, 'हे महाभाग ! आप सदैव राज-सभा में पधारा १११९ है । सम्पूर्ण मूल ग्रन्थ ११०० श्लोक प्रमाण है।