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कार्तिक, वीर निर्वाण सं० २४६४ ] चाणक्य और उसका धर्म
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प्रन्थके टीकाकारने चाणक्य परिचय इस प्रकार साहूहि भणियं-रायाभविस्मह, ततो मादुग्गदिया है-- "यह उचित है कि इम स्थान पर हम इन ति जाहितीति दंता घसिया पुणोवि आयरि दो व्यक्तियों के विषयों में लिखें। यदि मुझसे याया कहिय. भणंति कज्जउ एत्ताहे विवतरिया पूछा जाय कि यह चगणक कहाँ रहताथा और यह
राया भविस्सह अम्मुक बालभावेण चोद्दसवि, किमका पुत्रथा ? तो मैं उत्तर दूंगा कि वह तक्ष. शिलाक ही निवासी एक ब्राह्मणका पुत्रथा। वह
विज्जाठाणाणि आगमियाणि सोत्थ सावगो तीन वदों का ज्ञाता, शास्त्रां गं पारंगत, मंत्र विद्या संतुहा" में निपुण और नीति शास्त्र का प्राचार्यथा"। भावर्थ-गोल्ल दशमं चणिक नामका गाँव
सुज्ञ वाचक ! इन प्रमाणों से ममझ गए होंगे था। उसमें चणित नामको ब्राह्मण रहनाथा। कि चाणक्य जाति का ब्राह्मण थो, वेदशास्त्र, वह श्रावकोंके गुण से सम्पन्नथा। उसके घर नीति-शास्त्र और राज्य-शास्त्र का महान् आचार्य पर जैन श्रमण ठहरे हुएथे। उसके घरमें दाढ़ था और सम्राट चन्द्रगुप्त बौद्धग्रन्थ की मान्य- सहित एक पुत्र की उत्पत्ति हुई। उस लड़के को तानुसार सारे जम्बुद्वीपका राजा बना, यह भी गुरुकं चरणोंमें नमस्कार कराया और गुरुजी को उसी चाणक्य का प्रताप था।
कहा कि यह बालक जन्मस दाढ़ सहित उत्पन्न क्यों अब जैनग्रन्थकारोंन मंत्रीश्वर चाणक्यको जो हुआहै। साधुओने प्रत्युत्तर दियाकि यह बालक जैन मानाहै उसके कुछ प्रमाण उद्धृत करते हैं:- राजा होगा' । यह सुन कर पिनाने सोचा कि
(१) आवश्यक सूत्रकी नियुक्तिमं चाणक्य गजा बनने दुर्गनिम जायेगा, यह दुर्गनिम न की परिणामिकी बुद्धि के विषयग दृष्टान्नम्प नाम जाय, एमा सोचकर पिनाने उम पुत्रक दादी आताहै । यथा
को घिम डाला और फिर प्राचार्य निवेदन "खमए १० अमच्चपुत्ते ११ चाणकके १२ किया । प्राचार्यने उत्तर दिया कि अब यह
बालक राज्यका अधिकारी ना नहीं रहा, लेकिन चेव थूलभद्देच" आवश्यक. भा. ३१० ५२७
राज्यका संचालक अवश्य बनगा। अनुक्रम से
बाल्यावस्था व्यतीत होनेके बाद वह १४ विद्या (२) आवश्यक सूत्रकी चूणिम उक्त गाथाका
का पारगामी हुा । और संतुष्ट चित्त वाला खुलासा करनंहुए लिखादै :
श्रावक बना । ( अावश्यक मूत्र, मलयागिरि टीका "चाणकति, गाल्लविमए, चणयग्गामा, महिन, भाग ३, दे० ला० पु० तरफ में प्रकाशित ) तत्थचणि तो माहणा, सो अवगयमावगा,
इमी सूत्रमें आगे चागाक्यकी बुद्धिका, तस्य घर साहठिया, पुत्ता से जाता सह नन्दगज्यक नाशका और चन्द्रगुप्तका राजा दाढाहि, साहूण पाएसु पाडितो, कहियं च, बनानेका विस्तार से विवचन किया है। लेकिन