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अनकान्त
मार्गशिर वीर-निर्वाण सं० २४६५
। वृति:-खरतरगच्छीय उपा
ध्याय क्षमाकल्याण, सं० १८६६ श्रा० सु० १०
। गुजराती भाषांतरः-हीरालाल हंसराज सं० १६६४से पूर्व
संस्कृत
ii
हिन्दीभाषांतर:-खरतर
,
२
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गच्छीय जिनकृपाचन्द्रमरि
पूर्णिमा (राका) पक्षीय सत्यराज गणि, सं० १५१४ पद्य
सं० १६८०
iii
हिन्दीभाषांतर:-खरतरगच्छीय वीरपुत्र आनन्दसागर सं० १९६१ दीवाली भुज०
वृद्धतपा लब्धिसागर सूरि सं० १५५७ पो० शु० ८ मो० श्लो० ५०७
iv अंग्रेजी भाषांतर-बाड़ीलाल ___ जीवालाल चोकसी B.A.
तपागच्छीय ज्ञानविमलसूरि, सं० १७५५ राध० सु० २ उन्नताख्यपुर गद्य-पद्य ग्र० १८००
खरतरगच्छ य जयकीर्ति, सं० १८६८ मि० व० १० जैसलमेर मूलराजराज्ये गा
खरतरगच्छीय लब्धिमुनि, सं० १६६० जेष्ट सु. ७ भुज० श्लो० १०५१
, वृतिसहित दे०ला. पु०फंड सूरत (ग्रन्थांक ६३)
से सं० १९८० में प्रकाशित है ii भाषांतरसह श्रीजिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार-सूरत से iii भाषांतर सहदोबार, आनन्दसागर ज्ञानभंडार-कोटेसे प्रकाशित । iv रमणीक पी०कोठारी, गांधीरोड, अहमदाबादसे प्र. और युनिवर्सिटीमें प्रीवियस क्लासमें टैक्स्ट बुकरूपसे स्वीकृत । दे० ला• पु० फंडसे प्रकाशित ग्रन्थकी प्रस्तावनामें अवचूरिका कर्ताक्षमाकल्याण प्रघोषरूपसे लिखा है और प्रशस्ति नहीं दी है पर बीकानेर भंडारों आदिमें समकालीन लिखित सब प्रतियोंमें प्रशस्ति उपलब्ध है। भाषांतरसह सं० १९६४-१९७९ दो प्राकृतियें कच्छ और अहमदाबादसे प्र. हो चुकी हैं।
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निर्नामक पत्र १६ मुनि कांतिसागरजीके पास
३ श्रीवीरसमाज अहमदाबादसे प्र० ४ दे० ला० पु. फंड ग्रन्यांक ५६ प्र० २-५ हीरालाल इंसराजजामनगरसे प्र० ७ जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार-बम्बईसे प्रकाशित है।