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अनेकान्न
[पोप, वीर-निर्वाण सं० २४६५
इसी प्रकार कुन्दकुन्दकं ग्रन्थांकी और भी हानेकी हालतमें या तो 'बारसअणुवेक्वा' वाला कितनी ही गाथाअंकि पूर्वार्ध, ऊनगर्थ, एकपादादि मंगलाचरण और लिंगपाहुडके मंगलाचरणका अंश मूलाचारमं ज्यों के त्यों या कुछ माधारणसे पूर्वार्ध मूलाचारमें नहीं पाया जाना चाहिए था अन्तर के माथ पाए जाते हैं, जिन्हें विस्तारभयसे और या फिर बारसअणुवेक्खा तथा लिंगपाहुडमें यहाँ छोड़ा जाता है।
ही उसका उस रूपमें अस्तित्व नहीं होना चाहिए ___इस मय तुलना परमं मुझे नी ऐमा मालूम था. क्योंकि कोई भी ममर्थ ग्रंथकार दूसरे ग्रंथकारहोता है कि मृलाचारक का प्राचार्य कुन्दकुन्द ही के मंगलाचरणकी नक़ल नहीं करता है। होने चाहिएँ । कुन्दकुन्दकं एक ग्रंथकी कोई कोई आचार्य कुन्दकुन्दके 'प्रवचनसार' में यद्यपि गाथायें जो मृलाचारम उपलब्ध होना हैं वे कुन्द- मुनि-धर्मका निम्पण है; परन्तु वह बहुत ही संक्षिप्त कुन्दकं दृमर ग्रंथाम भी पाई जाती हैं। उदाहरणक म्पमं है। इसलिए आचारांगकी पद्धतिके अनुरूप लिए ममयमार की निम्न गाथाका लीजिय--
मुनि-चर्याका कथन करनेवाला उनका कोई ग्रंथ "अरसमरूवमगंध 'अध्यन चंदगागुण समद। अवश्य होना चाहिए और वह मेरी समझमें 'मूलाजाग अलिंगमाहणं जावमारणांइट मटाणं ।।
चारही जान पड़ना है। विद्वानों में मेरा निवेदन
-ममयमार. ४९ है कि वे इम विषयमें यथेष्ठ विचार करके अपना यह गाथा प्रवचनमारक दमरे अधिकारमें अपना निर्णय दव, जिमसे यह बात निश्चित हो नंबर ८० पर, नियममार में नम्बर ५६ पर और जाय कि मलाचार ग्रंथ वास्तवमें कुन्दकुन्दाचार्यका भावपाहुइमें नम्बर पर पाई जाती है । इमी बनाया हुआ है या वट्टकेरका । यदि वट्टकरका नरह और भी कुछ गाथाओंका हाल है. और बनाया हुआ है. नी उनकी गुरुपरम्पग क्या है ? यह बात उन गाथाअंकि कुन्दकुन्दकृत होने को पृष्ट अस्तित्वकाल कौनसा है ? और मृलाचारके करती है । मंग यह अनमान कहाँ तक मच है इम अतिरिन उन्होंने किमी दूसरे ग्रंथका भी निर्माण पर विद्वानोंको विचार करना चाहिए। मुझे तो यह किया है कि नहीं ? इन मब बातोंका भी निर्णय बात भी कुछ बटकतीमी ही जान पड़ती है कि दो हाना चाहिए. जिमस वस्तुस्थिति म्लब स्पष्ट हो बगबरकी जोटक विद्वानों में एक दृमरे के ग्रंथके जाय । आशा है कि मेरे इम निवेदन पर ज़ार मंगलाचरणको अपने ग्रंथ में अपनावे-उमं ज्यां ध्यान दिया जायेगा। का न्या उठाकर रक्य । मृलाचारका का भिन्न वीरमवा-मन्दिर-सम्मावा. ता०२६-११-४६३८