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'अनेकान्त' पर लोकमत
(६) श्री० चन्द्रशेखर शास्त्री . I. IPil. II. नहीं किया है-जैनधर्मका अतीत बहुत गौरव.
M. ID काव्यतीर्थ साहित्याचार्य प्राच्य- मय तथा उज्वल था, उमं भारतीय इतिहासमें विद्यावारिधिः
अधिक महत्व मिलना चाहिये । पर जैनसाहित्यसे "पत्र वास्तवमें बहुत सुन्दर निकला है। जैन विद्वानोंको जे पर्याय परिचय नहीं है, उसका समाजके पत्रों में मम्पादनका एकदम अभाव रहता उत्तरदायित्व विशेषनया जैनममाज पर ही है। है । वास्तव में सम्पादनकला और जैनममाज इन मुझे आशा है कि 'अनेकान्त' द्वारा जैनधर्म, जैनदोनों शब्दों में कोई सामंजस्यही नहीं है। किंतु माहित्य तथा जैन-इतिहाम अधिक प्रकाशमें
आपका पत्र न केवल उस नायका अपवाद है श्रावेगा और ऐतिहासिक लोग जैनधर्मक तीनवरन उसका सम्पादन अत्यन्त उनकोटिका है। के माथ अधिक न्याय करने में समर्थ होंगे।" आपने अनेकान्तको निकालकर वामनवम एक बड़ी
बहा () साहित्याचार्य विश्वेश्वरनाथ रेउ.1..... भारी कर्माको पूरा किया है। आशा है कि यह ।
"अनकान्न एक उनकोटिका पत्र है और पत्र इसी प्रकार रिमर्च द्वारा जैनममाज एवं हिन्दी
इसमें जैनधर्म सम्बन्धी उनकोटिक निबन्ध प्रका संसारकी सेवा करता रहेगा। पत्रके उच्चकोटिक
" शिन होते हैं। श्राशा है जैनममाज इमे अपनाकर मम्पादनके लिए मेरी बधाई म्वीकार करें।"
मंचालक और मम्पादकके परिश्रमको सार्थक (७) मंगलाप्रसाद पुरस्कारविजेता प्रो० सत्य करेंगे।"
कंतु विद्यालंकार (डी. लिटः)- (8) श्री० रामस्वरूप शास्त्री, संस्कृताध्यक्ष
अनेकान्त' का दिसम्बर सन ३८ का अंक मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ःमैंने देखा । इसके सभी लेख उत्कृष्ट तथा विद्वत्ता यह पत्र वास्तव में अधिक मचिकर एवं पूर्ण है। विशेषतया, श्रीवा सूरजभानु वकीलका धार्मिक विचागेसे अलंकृत है। नथा विशेषनया 'भगवान महावीरके बादका इतिहास' लेम्ब बहुत जैनधर्मकी मत्ता, थिनि और महत्वको विम्तन ही खोजपूर्ण तथा उपयोगी है। मेरी सम्मनिमें रूपमें बतलाता है। विशिष्टविषयों पर जो लंग्व कवल इसी एक लेखक लिये भारतीय इतिहासके हैं वे सप्रमाण और मर्यातक वर्गिन है। म प्रत्येक जिज्ञासुको ‘अनेकान्त'का अनुशीलन विचारसे यह पत्र वनमान कालमें सुपठिन एवं करना चाहिये। जैनधर्म नथा इतिहास के माथ अल्पपठित जननाक लिय यहारी बनकर परभारतीय इतिहामके विद्वानांने यथोचित न्याय मापयोगी सिद्ध होगा।"