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वर्ष २ किरण ३ ]
क्रमश: नं० २०२, १२, १५ पर पाई जाती हैं ।
यथा
मग मग्गफलं त्तिय दुविह जिगमालणं समवाट । गोमो वा नत्म फलं होड़ शिव्वाण | — नियमसार २
क्या कुन्दकुन्द ही 'मूलाचार के कर्ता हैं ?
मग्गी मग्गफलं त्ति यदुविह जिलामामणे समवाद । मग्गो खलु सम्मतं मग्गफल होइ शिव्या ॥
मुलाचार २०२
मुहाम करमयं वयणं, परिचिता सरहिंद भामासमिदो वद नम्म ॥ . नियमसार, १३२
पेनुएल्हास कम परणिदासविहादी ! जिना मारहिंद भामासमदी हवे कहणं ॥
—मूलाचार. १२
पामुक गृहिए परोपरोहेण । उच्चारादिबागो इट्टा मांदी हवं तस्म ॥
—नियमसार, ६५
एते च दूरे गृहे विमान मत्रिरहे । उच्चारादिन्न पहिठा गया हवे सांसद || -मलाचार, १५.
पंचास्तिकायकी गाथाएँ नं० ४५. १४८ मृलाचार क्रमश: नं० २३४ व ६६६ पर ज्यों की त्यों पाई जाती हैं ।
समयसार की 'भूत्थेाभिगदा' नामकी गाथा भी मुलाचार में २०३ नम्बर पर ज्योंकी त्यों पाई जाती है । परन्तु समयसारकी 'रत्तो बन्धदि' नाम की गाथा नं १५० मूलाचार नं २५७ पर कुछ शब्दों के परिवर्तन के साथ उपलब्ध होती है ।
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यथा
रत्तो बंधदि कम्म मनदि जीवो विराग संप | एसो जिणोवदेसो तह्मा कम्मेसु मा रज्ज ||
—समयसार, १५०
रागी बन्ध कम्मं मनइ जीवां विरागमं । एसो जिगोसो समासदो बन्धमोकवाण' ॥
यह गाथा प्रवचनमार में भी निम्नरूपसे पाई जाती है
रत्तो चदि कम्मं मन्तदि कम्मेहिं रागरहिया । एसो बन्धममामो जीवाणं जाग मिच्छयो ।
- प्रवचनमार, २-८७
'लिंगपाहुड' की मंगलाचरण-गाथाका 'काऊण मोक्कारं अहंता तहेव सिद्धा' । यह पुर्वार्ध मुलाचार के 'पडावश्यक अधिकार की मंगलाचरणगाथाका भी वर्थ है: परन्तु उतरार्ध दोनों का भिन्न है ।
'बोध पाहुड' की ३३ नम्बरकी गइदिये च काये' और ३५ नम्बरकी पंचत्रि-इंद्रियपाणा' नामकी दोनों गाथाएँ मुलाचार में क्रमश: ४४६७ ११६४ नम्बर पर पाई जाती हैं, परन्तु मुलाचारमें मरण वचका की जगह 'मरणवचकायादु' श्री 'पारा' की जगह दाणा' पाठभेद पिछली गाथा नं० १९६१ में पाया जाता है, जो ही बहुन साधारण है ।
'चाग्निपाहुड' की ७ नम्बरकी गाथा भी मुला चार मे २०१ नम्बर पर पाई जाती है । परन्तु 'चारिनपाहुड' में गिम्मकिय क्किंबिय पाठ है और मूलाचार में 'म्मिकि किंविद' पाठ पाया जाता है, जिसे वास्तव में कोई पाठभेद नहीं कह सकते ।