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अनेकान्त
[मार्गशिर, वीर-निर्वाण सं० २४६५
पुष्यमित्रके पीछ उसके वंशके १ राजा राज्य कासीपुत्त भागभद्र त्राताके-जोकि अपने राजके करते रहे। इस प्रकार शुंगवंशी ब्राह्मणोंका १४ वें बरसमें है. उसके पास आये हुए. तखसिला यह राज ११२ बरस तक रहा; जबकि राजाक निवासी दियके पुत्र यवनदृत नागवत हेलिमंत्री वासुदेव नामके कण्व ब्राह्मणने गजाको उदोरने" मरवा कर स्वयम राज्य पर कब्जा कर लिया।
____ इनही दिनों विक्रम संवत चला। इस उसके बाद कण्व वंशके तीन गजा और हुए,
संवनके बिषयमें पुरानी खोज करने वाले विद्वान परन्तु इस वंशका राज्य कुल ४५ बरस तक ही रहा। उसके बाद ईसासे २७ बरस पहले अंध्र
___ बड़ी भारी गड़-बड़में पड़े हुए थे-कुछभी पता वंशके एक गजाने जो सातवाहन वा मातकार्णि
नहीं लगा मकं थे कि यह संवन कब चला और कहलाने थे और जिनका राज्य मारे दम्वनमें
किसने चलाया; परन्तु कालकाचार्य नामकी एक फैला हुआ था। कण्ववंशके गजा सुश्रमणको
- जैन कथासे यह गुन्थी बिल्कुल सुलझ गई है मारकर राज्य छीन लिया । ये लोग द्राविड़
- और मब विद्वानांन मानली है। उसके अनुसार थे और बहुत समयसे दक्खनमें गज्य कररहे थे।
। उनके गर्दभिल्ल जानिके एक हिन्दु गजा विक्रमापीछे येही लोग मालबाहनभी कहलाने लगे थे पर
दित्यन जैन-धर्मकी रक्षा करने वाले शकोंको इनके ममयमं प्राकृतका बहुत भार्ग प्रचार हुश्रा
मध्य भाग्नम निकाल कर ईमासे ५७ बग्म और संस्कृतका प्रचार दब गया।
पहले विक्रम संवन चलाया । शक जातिका
वृत्तान्त आगे लिखा जाता है, जिन्होंने विक्रमाशंगवंश और कण्ववंशक राज्य कालम दिन्यक पिता गर्दभिल्लको हराकर उज्जैन पर अपना जैन और बौद्धधर्मक स्थानमें वैदिकधर्मका अधिकार कर लिया था, परन्तु उनका यह अधिकार ग्वब प्रचार हुआ। शैवधर्म और भागवतधर्म केवल चार ही बरम रहाः पीछे विक्रमादित्य (वैष्णवधर्म) की उत्पत्ति हुई और बहुत प्रचार ने उनसे ही राज्य छीन अपना संवन चलाया हुआ । सौ डेढ़ मौ बरसके अन्दर ही अन्दर इन था, इसके १३५ बरम पीछे उजैन पर फिर शकों धोका ऐसा भारी प्रचार होगया कि उस समय का राज हो गया, तब उन्होंने शक संवत् चलाया, तक्षशिलाके एक यूनानी राजाने जो अपना एक जो अब तक चल रहा है। दक्षिण देशके सबही यूनानी दूत यहाँके राजा भागभद्रके पास भेजा जैन ग्रंथों में शक संवन ही लिखा जाता रहा थाः उस यूनानी दृतने भी यहाँ विष्णु भगवानका है। एक गरुडध्वज बनवायाः जिसपर खुदे लेखका
शक लोग तिब्बतके उत्तर और चीनके पच्छिम अर्थ इसप्रकार है:
में तातार देशके रहने वाले थे। ये लोग आर्य भाषा "देवोंके देव वासुदेवका यह गरुडध्वज यहाँ बोलते थे और रहन सहन धर्म विश्वास आदिमें बनवाया, महाराज अन्तलिकितके यहाँसे राजा भी ऐसे ही थे जैसा वर्णन सबसे पुरानी पुस्तक