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अनेकान्त
[मार्गशिर वीर-निर्वाण सं० २४६५
उसने चढ़ाई करके फिरस सारे हिन्दुस्तानपर अधि- कराई। ११ वे बरस भावलपुरमें राजाधिराज कार कर लिया। खतनके एक लेखमें लिखा है देवपुत्र कनिष्कके नामसे बुद्धकी मूर्ति प्रतिष्ठापित कि खननके राजा विजय संभवके वंशज विनय- हुई । कनिष्कने चीनपर भी चढ़ाईकी थी, परन्तु कीर्तिने कनिष्ककं साथ मिलकर हिन्दुस्तानपर रसद न पहुँचनेसे वापिस आना पड़ा था। उसने चढ़ाईकी और अयोध्या जीती। इसके बाद कनिष्क बदलशांकी जगह पिशावरको अपनी राजधानी ने सातबाहन सालबाहन) से उज्जैन जीतकर बनाया था। अशोककी तरह उसने भी बौद्धधर्म ईम्बी ७८ में एक संवत चलाया जो बराबर अब को दूर-दूर तक फैलाया । काशमीरमें बौद्धधर्म तक चला आ रहा है। राजा विजय संभवके राज्य की एक भारी सभा कराई जिसमें ५०० विद्वान कालमें आर्य वैरोचनने म्लतनमें बौद्धधर्म चलाया इकट्ठे किये गये । बौद्धधर्मकी महायान नामकी था। इस वंशका राज्य बहुत पीड़ी तक बनारहा। नवीन संप्रदाय स्थापित हुई जो इस समय तक तेरहवीं पीढ़ीमें राजा विजयकीर्ति हुआ। ईसासे तिब्बत, चीन, जापान और कोरियामें चल रही है। दो साल पहले चीनके राजदूत चोनमें बौद्धधर्म बुद्ध भगवान के त्रिपिटकका भाष्य तैय्यार किया का प्रचार करनेके वास्ते कम्बोजदेशसे बौद्धधर्मको गया और ताँबके पत्रोंपर खुदवाकर सुरक्षित पुस्तक ले गये थे। इससे सिद्ध है कि खतन और रक्खा गया। काशमीर देशकी सारी आमदनी कम्बोज आदि देशों में बहुत दिनोंसे बौद्धधर्म धर्मप्रचारके वास्ते अर्पण करदी गई। दूर-दूर फैला हुआ था।
देशोंमें बौद्ध साधु धर्म-प्रचारके वास्ते भेजे गये,
जहाँ कनिष्कने अनेक स्तुप, बिहार, मठ और कनिष्क बड़ा भारी प्रतापी राजा हुआ है। चैत्य बनवाय । वह कट्टर बौद्ध था। उसके द्वारा बौद्धधर्मकी असीम उन्ननि हुई । उसने पाटलीपुत्रपर चढ़ाई ईस्वी १२१ में कनिष्कका देहान्त होनेपर कर वहाँके राजाको हराया, गजासे भारी हरजाना उसका बेटा वासिष्क गद्दीपर बैठा, उसके पीछे मांगा लेकिन वहांसे बुद्धभगवानका कमण्डलु हविष्क, यह भी कनिष्कके समान बौद्ध-धर्मका मिलनेपर बौद्ध विद्वान अश्वघोपको साथलेकर बड़ा भारी प्रचारक हुआ। इसका बनवाया हुआ वापिस चला आया। इसके बाद ईरानके पह्नव एक महा विशाल बौद्ध संघाराम मथुरामें मिला है। राजाने हिन्दुस्तानपर चढ़ाईकी, परन्तु कनिष्कने काशमीरमें उसने हविष्कपुर नगर बसाया और घोर युद्धकर उसको भगाया । पिशावरकी खुदाईसे बौद्ध-धर्मको वृद्धि की। ईस्वी ६३१ में जब हेनसांग मिले हुए एक लेखमें जो शक संवत् ५ का है नामका बौद्धयात्री वहाँ गया था तो उस समय बौद्ध प्राचार्योंके प्रतिग्रहमें दिये गये कनिष्क वहाँ पाँच हजार बौद्ध साधु थे जो अनेक बौद्धबिहार और महासनके संघारामका उल्लेख है। धर्मशालायें चला रहे थे, हविष्कके बाद दूसग तीसरे बरस सारनाथमें बुद्धकी मूर्ति प्रतिष्ठापित कनिक राजा हुआ, और फिर वासुदेव राजा हुआ।