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वर्ष : किरण २] •
भगवान महावीरके बादका इतिहास
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बदस्खशामें बड़ी गड़ बड़ होरही थी । बलख-बुग्वारा के मुकाबिलेको खड़ा हुआ। में सीरियाके यूनानी राज्यकी तरफसे यूनानी गवर्नर (क्षत्रप) राज्य करता था । ईसासे २५० इनही दिनों उड़ीसामे एक महाप्रतापी जैन बरस पहले क्षत्रप दियोटोतने अपने राज्यको गजा खारवेल राज्य करता था। उसने देखा कि सीरियाके राज्यसं आजाद करलिया । बलख पुष्यमित्र उसका मुक़ाबिला नहीं कर सकेगा के पच्छिम तरफ़ खुरासानमें पार्थव जातिका राज्य और दिमेत्र उसको जीतकर उड़ीसा परभी चढ़ था, जो पह्नव कहलाते थे, वहाँ उस ममय शकों आवेगा; इसकारण खारवेल खुद दिमेत्रके मुक़ाबिले की एक जाति पर्ण पाबमी थी. इन शकोंकी को पाया और दिमेत्रको वापिस भगाते२पंजाबसे सरदारीमें सारे पार्थव यूनानी राज्यकं स्त्रिलाफ बाहर निकाल कर आया। लौटते हुए खारवेल होकर ईसास २४८ बरस पहले स्वतंत्र होगये. मगध परभी चढ़ आया , परन्तु पुष्यमित्रने फिर उन्होंने मार ईगन पर अधिकार करीलया उसके पैरों पर पड़कर अपना राज्य बचा लिया।
और चार मी बरस नक राज्य किया । बखतरमें पिछले दिनों नन्द गजा जो जैन मूर्तियाँ उड़ीसा यूनानियोंका कुछ राज बना रहा, मौरियाक स उठा लाया था, उनको वापिस लेकर खारवेल यूनानी राजा अन्तियोकन ईमास.०८ बरस पहले वापिस घर चला गया। वारवेल चक्रवर्तीके समान बास्त्रतर पर चढ़ाईकी: वहाँ देवदातका पाता महादिग्विजयी राजा हुआ है । उसने सारे एकथिदिम गज्य करता था। उसने अपने बेटे दग्बन और बंगालको जीत कर वहाँ जैन-धर्मका दिमत्रकी मारफत सुलह करली । अन्तियोक प्रचार किया, परन्तु उसके मरने पर उसका ने दिमत्रको अपनी बेटी व्याह दी और उसकी राज्य आगे नहीं चला । वारवेलके मरने पर सहायतासे काबल पर चढाई की । वहाँके राजा पुष्यमित्रने फिर जार पकड़ा । दिमेत्रको खदेड़ मुभागसेनने मुलह करली । यहाँस अन्तियोक कर जिस पंजाब पर खारवेलका गज्य होगया वापिस चला गया, उसके वापिस चले जान था उसपर अब पुष्यमित्रने कब्जा करके अश्वमेध पर दिमंत्रका गज खूब बढ़ा। सुभागसनक मरनं यज्ञ किया । ईमाम ११५ बग्म पहले दिमेत्र पर ईसास १६० बरस पहले दिमत्रन हरान, यूनानीका बंटा मेनेन्द्र फिर हिन्दुम्नान पर चढ़ काफिरस्थान, कंधार और सीम्नान पर कब्जा कर पाया, परन्तु अबकी बार उसने मगध पर करलिया। फिर दिमेत्रन हिन्दम्तान पर चढाई चढ़ाई नहीं की; किन्तु अव्वल पंजाब पर कब्जा की, और मद्र देशको राजधानी मियालकोटको करके फिर दमवनकी तरफ जीतता हा काठियाजीतकर, मथुरा और मध्य देशभी जीता, और वाड़ तक अपना गज्य जमा लिया। हिन्दुम्नानसे फिर मगध परभी चढ़ाई करदी । इनहीं दिनों बाहरभी चीन तक उमका गज्य होगया, उसने पुष्यमित्र ब्राह्मणने मौर्य राजाका सिर काटकर बुद्धधर्म म्बीकार कर लिया था, बौद्ध-प्रन्यों में मगधका राज्य अपने हाथमें लिया था, वह दिमंत्र उमको मिलिन्द लिखा है।