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वर्ष २ किरण १]
जैन समाज क्यों मिट रहा है ? उक्त कोष्टकके अंक केवल दिगम्बरजैन कि जैनसमाजमें १२४५५ लड़के लड़कियाँ तो सम्प्रदायको उपजातियों और संख्याका दिग्दर्शन ४० वर्षकी आयुस ७० वर्ष तकको आयुके कारे कराते हैं । दिगम्बर-जैनसमाजकी तरह श्वेताम्बर हैं। जिनका विवाह शायद अब परलोकमें ही सम्प्रदायमें भी अनेक जाति-उपजातियाँ हैं। जिनके हो सकेगा। उल्लेखकी यहाँ आवश्यक्ता नहीं । कुल १२ लाखकी अल्पसंख्या वाले जैनसमाजमें यह सैकड़ों
जिस समाजके सीने पर इतनी बड़ी आयुके उपजातियाँ कोढ़में खाजका काम दे रही हैं । एक
अविवाहित अपनी दारुण कथाएँ लिये बैठे हों, जाति दूसरी जातिसे रोटी-बेटी व्यवहार न करनेके
जिम समाजने विवाह-क्षेत्रको इतना संकीर्ण और
संकुचित बना लिया हो कि उसमें जन्म लेने कारण निरन्तर घटती जारही है।
वाले अभागोंका विवाह होना ही असम्भव उक्त कोष्ठककं अंक हमारी आँखोंमें ऊँगली बन गया हो; उस समाजकी उत्पादन-शक्तिका डालकर बतला रहे हैं कि नाई, बढ़ई, पोकरा, निरन्तर हास होते रहनेमें आश्चर्य ही क्या है? मुकर, महेश्री और अन्य धर्मी नवदीक्षित-जैनोंको जिस धर्मने विवाहके लिये एक विशाल क्षेत्र छोड़कर दि. जैनसमाजमें ६४० तो ऐसे जैन निर्धारित किया था. उसी धर्मक अनुयायी कुलोत्पन्न स्त्री-पुरुष बालकोंकी संख्या है जो १८ आज अज्ञानवश अनुचित मीमाओंके बन्धनों में जातियोंमें विभक्त है, जिनकी जाति-संत्र्या घटने- जकड़े पड़े हैं, यह कितने दुःखकी बात है !! घटते १०० से कम २०, ११, ८ तथा २ तक रह क्या यही कलियुगका चमत्कार है? गई है। और ३८५६ ऐसे स्त्री-पुरुष-बालकोंकी मंख्या है जो १४ जातियों में विभक्त है। और जैनशास्त्रोंमें वैवाहिक उदारताके मंकड़ों जिनकी जाति संख्या घटते-घटते १०० से भी स्पष्ट प्रमाण पाये जाते हैं। यहाँ पं० परमेठीकम १०० तक रह गई है।
दासजी न्यायतीर्थ कृत "जैनधर्मकी उदारता"
नामक पुस्तकसे कुछ अवतरण दिये जाने हैं, जो भला जिन जातियोंके व्यक्तियोंकी संख्या
हमारी प्राग्वे ग्बोलने के लिये पर्याप्त है:ममस्त दुनिया में २, ८. २०, ५०, १००, २०० रह गई हो, उन जातियोंके लड़के लड़कियोंका उसी भगवजिनसेनाचार्यने श्रादिपुगणमें लिम्बा है किजातिमें विवाह कैसे हो सकता है ? कितनी ही
बोटल्या नान्या स्त्रां तांच नेगमः। जातियोंमें लड़के अधिक और कितनी ही जातियोंमें लड़कियाँ अधिक हैं। योग्य सम्बन्ध वनम्वां ने च गजन्यः म्वां द्विजन्मा किचिश्चताः नलाश करनेमें कितनी कठिनाइयाँ उपस्थित अर्थात शूहका शूद्रकी कन्यासे विवाह होती हैं, इस वे ही जान सकते हैं जिन्हें कभी करना चाहिये, वैश्य वैश्यकी नथा शूद्रकी कन्यासे ऐसे सम्बन्धोंसे पाला पड़ा हो। यही कारण है विवाह कर मकता है. क्षत्रिय अपने वर्णकी