________________
-८
अनेकान्त
किये जाने वाले अनेक निर्दयतापूर्ण कार्योंको अवैध करार देदिया गया था, किन्तु धर्मके नामपर कीजानेवाली निर्दयताका इसमें भी अन्तर्भाव नहीं किया गया। इस बातको प्रत्येक व्यक्ति समझ सकता है कि मारने पीटने अधिक बोझा लादने आदिमें पशुओं को इतना दुःख नहीं होता, जितना बांध- जूड़कर भालोंसे छेदने ऊपरसे व भाले पर डालने, गुदा मार्ग में लकड़ी डालकर मुँह में से
रक क़ानून' में कुछ और संशोधन किये हैं, किन्तु धर्म के नाम पर की जाने वाली निर्दयताको उसमें भी अवैध नहीं किया गया, यह खेदका विषय है ।
[कार्तिक, वीर निर्वाण सं० २४६५
निकालने, श्रान्तोंको खींचने और अण्डकोषोंको कुचलने आदिमें होता है । परंतु खेद है कि क़ानून निर्माताओंने इन कार्योंको निर्दयतापूर्ण मानते हुए भी धर्म में हस्ताक्षेप करनेके भयसे नहीं रोका !!
हाँ इस विषय में ब्रिटिश भारतकी अपेक्षा देशीराज्योंने कुछ अधिक कार्य किया है निज़ाम हैदराबादने जून १६३८ से अपने राज्यमें गऊ और
सितम्बर १९३८ में भारतीय व्यवस्थापिका सभा (Legislative Assembly) ने अपने शिमला - सेशन (Soession) में 'पशु निर्दयता निवा
दक्षिणी कट जिले के विरुधचलम् ताल्लुक के मदुवेत्तिमंगलम् नामक
स्थान में सूरके छोटे छोटे जीवित बच्चोको भालेसे बींधकर और उसे विधे
रूपमें ही भालोंपर उठाए
हुए आम सड़कों पर जलूम बनाकर चलते हैं
d
ऊँटकी क़ुरबानी करना कानून द्वारा बन्द कर दिया है। मैसूर, ट्रावनकोर तथा उत्तरी भारतके अनेक राज्योंने भी अपने यहाँ बलि विरोधी कुछ क़ानून बनाए हैं ।
पाठकों से यह छिपा नहीं है कि लोकमतक प्रबल विरोधके कारण ही भारत सरकारने सती