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वर्ष : किरण १]
अहिंसा धर्म और धार्मिक निर्दयता
अनुरोध किया था कि वह भारतसरकारकी इस कार्यका चिकित्सकों, पादरियों, जीवित प्राणियों के प्रवृत्तिको बन्द करनेमें सहायता दें । अमरीकामें श्रॉपरेशनका विरोध करने वाली सभाओं तथा अनेक वैज्ञानिक प्रयोगशालाओंमें जीवित पशुओं- अन्य भी अनेक व्यक्तियोंने घोर विरोध किया। की चीरफाड़ करके अथवा उनका ऑपरेशन एक अमेरिका निवासीका कहना है कि वहां करके वैज्ञानिक प्रयोग किये जाते हैं। इन बंदरों प्रतिवर्ष साठ लाख प्राणियोंका प्रयोगशालाओं में को भारतवर्षसे उन्हीं प्रयोगशालाओंके लिये भेजा बलिदान किया जाता है। उनमें से केवल पाँच जाता था, वहाँ उनको अनेक प्रकारके काटने-फाड़ने प्रति शतको ही बेहोश करके उनकी चीर-फाड़चीरने, छेदने आदिके कष्ट दिये जाते थे। इस की जाती है । शेष सब बिना बेहोश किये ही,
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चिंगलेपट जिलेके मादमबक्कम नामक स्थानमें जीवित भेड़बकरीके पेटको थोड़ा काटकर उमकी अति ग्वीचली जाती हैं और उन्हें सेल्लीयम्मन् देवीके सामने गलेमें हारकी तरह पहिना जाता है।
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चीरे-फाड़े जाते हैं। इन प्रयोगशालाओं पर किसी डाल दिया जाता है यह सब कुछ उन मृक पशुओंप्रकारका निरीक्षण नहीं हैं। इनमें निर्दयता पूर्ण को बेहोश किये बिना किया जाता है । सभी कार्य प्रयोग करने वालोंकी पूर्ण सहमतिसे किये जाते हैं। उन प्रयोगोंमें पशुओंकी रीढ़की इन प्रयोगोंके चिकित्मामें उपयोग विषयमें हड्डीके ऊपरसे खाल और मांसको हटाकर उनकी भी निश्चयसे कुछ नहीं कहा जा सकता । इन बंदरों नाड़ियोंको उत्तेजित करके उनको फासफोरमसे के म्वनमें से इमप्रकार निर्दयता पूर्वक निकाले जलाया जाता है । फिर उनको उबलते हुए पानीमें हुए पानी (Serum) को शिशु-पक्षाघातमें दिया