Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
३२
स्थानागसूत्रे गाथापञ्चकमाह-'गंता' इत्यादि, 'गंता ३, अगंता ३, आगंता ३ ' इति नव सूत्राणि पूर्वमुक्तानि, अनुक्तानि-सूत्राण्याह--'अणागंता' इत्यादि, आलापकइन्हीं उक्त अनुक्त सूत्रों को संग्रह करने के लिये सूत्रकारने इस गाथा पंचक को कहा है -'गंता य आगंता य' इत्यादि । इस प्रकार से गत्या के ३, अगत्वा के ३, और आगम्य के ३ ये यहाँ ९ सूत्र तो कहे गये हैं । जो " गंता य अगंता य आगंता" इन गाथास्थ तीन पदों द्वारा प्रकट किये गये हैं । तथा जो यहां पर नहीं किये गये हैं वे पद इन गाथाओं द्वारा सूचित किये गये हैं " जैसे “अणागंता-अनागत्य, चिट्टित्ता-स्थित्वा, अचिट्ठित्ता-अस्थित्वा, णिसिइत्ता-निषद्य, अणि. सिइत्ता-अनिषिध, हंता-हत्या, अहंता-अहत्वा, छिदित्ता-छित्त्वा, अछिदित्ता-अच्छित्त्वा, बूइत्ता-उक्त्वा, अबूइत्ता-अनुक्त्वा, भासित्ता -भाषित्वा, अभासित्ता-अभाषित्वा, दत्ता-दत्या, अदत्ता-अदत्वा, भुजित्ता-भुक्त्वा, अभुंजित्ता-अभुक्त्वा, लंभित्ता-लब्ध्वा, अलंभित्ताअलब्ध्वा, पिइत्ता-पीत्या, अपिइत्ता-अपीत्वा, सुइत्ता-सुप्त्वा, असु. इत्ता-असुप्त्वा, जुज्झित्ता-युद्ध्या, अजुज्झित्ता-अयुद्ध्या, जइत्ताजित्वा, अजइत्ता-अजित्या, पराजिणित्ता-पराजित्य, अपराजित्य, शब्द જ રહેશે, આ ઉક્ત અનુક્ત સૂનો સંગ્રહ કરવાને માટે સૂત્રકારે આ ગાથાપંચકનું કથન કર્યું છે.
" गंताय, आगंताय " त्याहमारे गत्वा (४२) न 3, अगत्वा (गया विना) ॥ 3, मने आगम्य ( मावान ) न 3 भजीन व न सूत्रनुं तो सूत्रारे मी Yथन ४ बधु छ, २ " गंता य अगंता य आगंता" मा आथाना १ पह! દ્વારા પ્રકટ કરવામાં આવેલ છે. તથા જેમનું અહીં કથન કરવામાં આવ્યું નથી, તે પદનું ગાથા દ્વારા સૂચન કરવામાં આવ્યું છે–
" अणागता-अनागत्य, चिद्वित्ता-स्थिवा, अचिद्वित्ता-अस्थित्वा, णिसिइत्ता निषद्य, अणिसिइता-अनिषिध, हता-हत्वा, अहंता-अहत्वा, छिदित्ता-छित्या, अछिदित्ता-अच्छित्वा, बूइत्ता- उक्त्वा, अबूइत्ता-अनुक्त्वा, भासित्ता-भाषित्वा, अभासित्ता-अमाषित्या, दत्ता -दत्वा, अदत्ता-अदत्वा, भुंजित्ता-भुक्त्या, अभुंजित्ता अभुक्त्वा, लंभित्ता-लब्ध्वा, अलंभित्ता-अलव्ध्या, पिइत्ता-पीत्वा, अपिइत्ता-अपीत्वा, सुइत्ता-सुप्त्वा असुइत्ता-असुदत्वा, जुज्झित्ता-युद्ध्वाा, अजुज्झित्ता-अयुवा, जइत्ताजित्वा अजइत्ता-अजित्वा, पराजिणित्ता-पराजित्य, अपराजित्य, शब्द, रूप, गंध, रस,
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૨