Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन, उद्देशक 1
अंग है। शरीर के अभाव में मुख हो नहीं सकता। अतः शरीर-रहित ईश्वर के द्वारा उपेदश की कल्पना करना नितान्त असत्य है। यदि वेदों का उपदेश ईश्वरकृत है और ईश्वर मुख आदि अवयवों से युक्त है तो फिर वह ईश्वर नहीं, देहधारी व्यक्ति ही है। इस तरह वेद अपौरुषेय नहीं, पौरुषेय ही सिद्ध होते हैं। ___यदि वैदिक दर्शन की वेदों को अपौरुषेय मानने की मान्यता को मान लें तो फिर मुसलमानों के कुरान शरीफ को भी खुदा (ईश्वर) कृत मानना होगा। क्योंकि उसका भी यह विश्वास है कि खुदा ने पैगम्बर मुहम्मद साहिब को कुरान शरीफ का ज्ञान कराया था। इस तरह कुरान भी वेदों की तरह अपौरुषेय होने के कारण वेदों के समकक्ष खड़ा हो जाएगा। इसके अतिरिक्त वेदों में जो याज्ञिक हिंसा-यज्ञ में की जाने वाली पशु-हिंसा का आदेश दिया गया है और ईश्वर-कर्तृत्व जैसी असंगत बातों का उल्लेख पाया जाता है तथा कुरानशरीफ में मांस-भक्षण आदि अधर्ममयी बातों का कथन किया है, उसे सत्य एवं मोक्षोपयोगी मानना पड़ेगा। परन्तु ये मान्यताएं नितान्त असत्य हैं; क्योंकि हिंसाजन्य प्रवृत्ति में धर्म हो नहीं सकता। अतः जो शास्त्र धर्म के नाम पर हिंसा का, पशु कि बलिदान का, पशु की कुर्बानी करने का आदेश देता है, वह धर्मशास्त्र नहीं, शस्त्र है, आत्मा का घातक है। वस्तुतः धर्मशास्त्र वह है, जो प्राणिमात्र की रक्षा एवं दया का उपदेश देता है; क्योंकि धर्म सब जीवों के प्रति दया, करुणा एवं कल्याण की भावना से ओत-प्रोत होने में है और यह बात सर्वज्ञोपदिष्ट वाणी में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। अतः आगम अपौरुषेय नहीं, पौरुषेय हैं, पुरुषोपदिष्ट होने पर भी प्रामाणिक हैं। क्योंकि उसके उपदेष्टा राग-द्वेष आदि विकारों से रहित हैं, सर्वज्ञ हैं, अतः उनकी वाणी में पारस्परिक विरोध नहीं मिलता। इस अपेक्षा से आगम पौरुषेय हैं और उनकी रचना का समय भी निश्चित है। अर्थात् वर्तमान काल में उपलब्ध आगमों के अर्थरूप से उपदेष्टा भगवान महावीर हैं और सूत्रकार भगवान महावीर के पंचम गणधर आर्य सुधर्मा स्वामी हैं। अतः ‘आउसंतेणं' इस समस्त पद का तात्पर्य यह हुआ कि आयुष्य कर्म से युक्त और फलितार्थ यह निकला कि कर्म-बन्ध से मुक्त होने पर भी जिनका अभी आयु कर्म क्षय नहीं हुआ है, ऐसे तीर्थंकर आगमों का उपदेश देते हैं। ... 'आउसंतेणं' इस पद पर उत्तराध्ययन सूत्र के द्वितीय अध्ययन की बृहवृत्ति में