Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
अध्यात्मसार : 1
295
जाए, तब दण्ड मिले, तब धीरे-धीरे उसकी हालत कैसी हो जाएगी? तब धीरे-धीरे वह व्यक्ति तनावयुक्त होकर विक्षिप्त-सा हो जाएगा।
इसी प्रकार वृद्धावस्था में शरीर की क्षमता और इन्द्रियों का बल अति क्षीण हो जाता है, किन्तु जीवनभर के संस्कारों के वश मन की इच्छाएं अधिक प्रबल एवं मन की तृप्ति अतृप्त रहती है। तब वह चाहता है इच्छा को पूर्ण करना, मन को तृप्त करना। लेकिन शरीर व इन्द्रियाँ साथ नहीं देतीं, तब उसके चित्त में एक तनाव उत्पन्न होता है। वह बहुत कुछ करना चाहता है, लेकिन कर कुछ भी नहीं पाता, तब एक प्रकार का चिड़चिड़ापन और व्याकुलता जागती है। अतृप्त इच्छाएं और अधिक प्रबल हो जाती हैं, जिससे उन्माद जागता है। वह स्वयं के जीवन से घृणा करने लग जाता है और आसपास की परिस्थिति एवं सम्बन्धियों के प्रति तिरस्कार जागता है। इस प्रकार वह सब पर भार रूप बन जाता है। जो उसकी सेवा करना चाहते हैं और उसके प्रति स्नेहभाव रखते हैं, वे भी उसके चिड़चिड़ेपन एवं तनावयुक्त व्याकुलता के कारण उससे दूर हो जाते हैं। .
इसका निवारण कैसे हो? यदि जीवन में व्यक्ति ने शरीर-शुद्धि की साधना की हो, आसन-प्राणायाम आदि किये हों, जिसने आसनस्थैर्य के माध्यम से शरीर को साधा है और जो मनोगुप्ति की साधना में निपुण है, ऐसा व्यक्ति मूढ़भाव को प्राप्त नहीं होता। वृद्धावस्था आने पर इन्द्रियाँ क्षीण हो जाने पर वह विवेक और धैर्य से काम लेता है। इसके साथ आसपास के संयोग भी काम करते हैं जैसे मित्र, परिवार, संबंधी इत्यादि। प्रतिदिन यदि समाधिमरण की भावना की जाए, इस मनोरथ का उच्चभाव से भव्य चिन्तन हो, तब समाधिमरण की योग्यता एवं अवसर में वृद्धि होती है। . यहाँ पर हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमारे दुःख का कारण कोई व्यक्ति या परिस्थिति नहीं है। साधारणतः सुख-दुःख के लिए जिम्मेदार हम किसी व्यक्ति या परिस्थिति को देखते हैं। लेकिन अगर व्यक्ति थोड़ा तत्त्वज्ञ है, तब वह कर्म को जिम्मेदार ठहराता है कि कर्म के कारण मुझको दुःख आया। लेकिन व्यक्ति यह देख नहीं पाता कि आधि-व्याधि-उपाधि रूप दुःख कर्मों के कारण नहीं हैं।