Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय अध्ययन, उद्देशक 2
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दंडसमायाणं संपेहाए भया कज्जइ, पावमुक्खुत्तिमन्नमाणे अदुवा आसंसाए॥76॥
छाया-विनापि लोभं निष्क्रम्य एष अकर्मा जानति पश्यति प्रत्युपेक्षणया नावकांक्षति एष अनगाराः इति प्रोच्यते अहोचरात्रं परितप्यमानः कालाकाल-समुत्थायी संयोगार्थी अर्थाऽऽलोभी आलुम्पः सहसाकारो विनिविष्टचित्तः अत्र शस्त्रे पुनः पुनस्तद् आत्मबलं, तद् ज्ञातिबलं, तत् मित्रबलं, तत् प्रेत्यबलं, तद् देवबलं, तद् राजबलं, तच्चौरबलं, तदतिथिबलं, तत् कृपणबलं, तत् श्रमणबल, इत्येतैः विरूपरूपैः कार्यैः दंडसमादानं संप्रेक्ष्य भयात् क्रियते पापमोक्षः इति मन्यमानः अथवा आशंसायै।
पदार्थ-विणावि लोभ-लोभ के बिना। निक्खम्म-दीक्षा लेकर। एस-यह आत्मा। अकम्मे-कर्म-रहित होकर। जाणइ-सब कुछ जानता है। पासइ-सब कुछ देखता है। पडिलेहाए-यह विचार कर। नावकंखइ-जो लोभ को नहीं चाहता है। एस-वह। अणगारेत्ति-अनगार। पवुच्चई-कहा जाता है, अज्ञानी जीव। अहो य राओ-अहो रात्र-दिन। परितप्पमाणे-अनेक प्रकार से संतप्त होता हुआ। कालाकाल-समुट्ठाई-काल और अकाल में उठने वाला अर्थात्-अपने कार्य की सिद्धि के लिए काल और अकाल की उपेक्षा करने वाला। संजोगट्ठी-संयोग को चाहने वाला। अट्ठालोभी-धन का लोभी। आलुपे-गला काटने वाला। सहसाक्कारे-बिना विचारे काम करने वाला। विणिविट्ठचित्ते-आरम्भ परिग्रह तथा विषय-कषायों में दत्तचित्त होता हुआ। इत्थ-पृथ्वीकायादि के उपघात करने में। सत्थे-शस्त्र का। पुणो पुणो-बारम्बार प्रयोग करता है। से-वह। आयबलेआत्म बल अपना शारीरिक बल। से-वह। नाइबले-जातिबल। से-वह। मित्तबलेमित्र बल । से-वह। पिच्चबले-परलोक बल। से-वह। देवबले-देव बल। से-वह। रायबले-राज बल। से-वह। चोरबले-चोर बल । से-वह। अतिहिबले-अतिथि बल। से-वह। किविणबले-कृपण बल। से-वह। समणबले-श्रमण बल। इच्चेएहिं-इत्यादि। विरूवरूवेहि-विविध प्रकार के। कज्जेहिं-कार्यों के लिए। दंडसमायाणं-हिंसा की जाती है। संपेहाए-यह विचार कर तथा। भयाकज्जइ-भय से पाप कर्म किया जाता है, तथा। पावमुक्खुत्ति-मैं पाप से मुक्त हो जाऊंगा-पाप