Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 1010
________________ पारिभाषिक शब्दकोश 921 प्रकृति-जड़ तत्त्व। सांख्य दर्शन जड़ पदार्थों को प्रकृति मानता है। प्रकृति बन्ध-कर्मों की प्रकृति-स्वभाव का बंध होना, अर्थात् आने वाले कर्म ज्ञानावरण हैं, दर्शनावरण हैं या अन्य प्रकृति के हैं। प्रज्ञापना सूत्र-12 उपांग सूत्रों में से चतुर्थ उपांग शास्त्र। प्रज्ञावान-पदार्थों के हेय और उपादेय स्वरूप का यथार्थ ज्ञाता, ज्ञानी। प्रच्छन्न-छिपी हुई। प्रतिमासंपन्न-विशेष प्रतिज्ञा धारण करने वाला साधक। प्रतिलेखन-वस्त्र-पात्र आदि उपकरणों का सम्यक्तया अवलोकन करने की एक प्रक्रिया। प्रत्यक्षीकरण-साक्षात् अनुभव। प्रत्याख्यान-त्याग, नियम एवं प्रतिज्ञा ग्रहण करना। प्रत्येक बुद्ध-अपनी आत्मप्रेरणा एवं आत्मजागृति से साधना पथ पर गतिशील साधक। प्रदेश बंध-कर्म वर्गणा के पुद्गलों का आत्मा में प्रविष्ट होना। प्रदेशी राजा-श्वेताम्बिका नगरी का राजा जो किसी समय नास्तिक था, परन्तु भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य केशी श्रमण के प्रतिबोध से जैन बन गया था। प्रदोषिका क्रिया-अपनी या अन्य की आत्मा पर द्वेष करना। प्रबुद्ध-विशिष्ट ज्ञानी, सजग पुरुष। प्रभूत-अत्यधिक, ऐसा खजाना जो कभी समाप्त नहीं होता। प्रमादी-विषय, कषाय, मद, अव्रत, मिथ्यात्व आदि विकार प्रमाद हैं। अतः इन विकारों में संलग्न रहने वाला प्रमादी कहलाता है। . प्रमार्जनी-शरीर पर बैठे हुए मक्खी-मच्छर आदि को हटाने के लिए ऊन का बना हुआ एक छोटा-सा गुच्छक। प्रवचन-उपदेश। प्रशम-कषायों को अच्छी तरह से शान्त-उपशान्त करना।

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