Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 1008
________________ पारिभाषिक शब्दकोश 919 और 5. वीर्य पुरुषार्थ आचार। अर्थात् ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य-पुरुषार्थ का आचरण करना। पंचेन्द्रिय-जिन प्राणियों के शरीर, जिह्वा, नाक, आंख और कान पांचों इन्द्रियां हैं। पण्डित-ज्ञानी, सम्यग् दृष्टि। सम्यग् ज्ञान से युक्त, पापों से डरने या बचने वाला। पण्डितमरण-ज्ञान पूर्वक मरण भाव को प्राप्त होना, अर्थात् समस्त पापों एवं ममत्व भाव का परित्याग करके शान्त भाव से मृत्यु का आह्वान करना। पांच महाव्रत-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। पांच याम-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह व्रत। . पांडित्याभिमानी-जिसे अपनी विद्वत्ता का अभिमान है। पर-प्रकाशक-ज्ञान, अपने ज्ञान से दूसरे पदार्थों के स्वरूप को प्रकाशित करता , है-परन्तु अपने स्वरूप को प्रकाशित नहीं करता। परम मेधावी-श्रेष्ठ-पूर्ण ज्ञानी। परमाणु-पुद्गल का वह सबसे छोटा हिस्सा, जिसका एक से दूसरा विभाग न हो सके। पर-व्याकरण-दूसरे का उपदेश या तीर्थंकर भगवान का उपदेश। परिग्रह-धन-सम्पत्ति एवं पदार्थों में आसक्ति ममत्व भाव एवं तृष्णा रखना। परिग्रह संज्ञा-पदार्थों एवं भोगोपभोग के साधनों तथा धन-वैभव पर आसक्ति भाव एवं तृष्णा का जागृत होना। परिणामी-परिवर्तित होने वाला। परिणामी नित्य-वस्तु का पर्यायों की बदलती हुई स्थिति में भी द्रव्य रूप से स्थायी रहना। परियून-जीर्ण-शीर्ण। परिताप-विशेष ताप-कष्ट। परितापनी क्रिया-दूसरे की आत्मा को परिताप-सन्ताप का कष्ट देना।

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