Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध कर्म का क्षय या क्षयोपशम करना भाव सन्धि कहलाता है, जिससे सम्यग् दर्शन और ज्ञान, चारित्र की प्राप्ति होती है। आचाराङ्ग में 'सन्धि' शब्द इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।
सन्नी-मनयोग से युक्त प्राणी, अर्थात् जिन प्राणियों के मन है। सन्मति-अच्छी बुद्धिवाला। भगवान महावीर का नाम।
समचौरंस संठाण-शरीर का एक प्रकार। सर्वांग परिपूर्ण और सुन्दर आकार को समचौरंस संठाण कहते हैं।
समनोज्ञ-चारित्र एवं आचार संपन्न साधु।
समवाय सम्बन्ध-किसी पदार्थ के सामने आने पर आत्मा का उसके साथ । होने वाला सम्बन्ध। ___ समिति-विवेक एवं यत्ना पूर्वक साधनापथ में प्रवृत्त होना। साध्य की सिद्धि के लिए साधनाकाल में की जाने वाली प्रवृत्ति में विवेक, यत्ना एवं समभाव को बनाए .. रखना।
सम्मूर्छिम-मनुष्य-माता-पिता के संयोग के बिना मल-मूत्र आदि अशुचिजन्य स्थानों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य।
सम्यग् ज्ञान-तत्त्वों एवं पदार्थों का यथार्थ ज्ञान-बोध। सम्यक्त्व-तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप पर श्रद्धा-निष्ठा रखना। सम्यक्तया-परिणामों में राग-द्वेष से युक्त भावों का सद्भाव। '
सर्वज्ञ-सम्पूर्ण लोकालोक में स्थित पदार्थों के तीनों काल के स्वरूप को अपनी शुद्ध आत्म-ज्योति से स्पष्टतः देखने वाले महापुरुष। .
सर्वथा पृथक्-पूर्ण रूप से अलग।
सागरोपम-समय का एक परिमाण। (कल्पना कीजिए कि यदि युगलियों के नवजात शिशु के बालों को इतना सूक्ष्म कर दिया जाए कि वे आंख में न रड़कें, इस प्रकार के बाल खण्डों से एक योजन लम्बे, चौड़े और गहरे कुएं को ठसाठस भर दिया जाए। फिर उस कुएं में से एक-एक बालखंड सौ-सौ वर्ष के पश्चात् निकाला जाए। जितने समय में वह कुआं खाली हो, उसे एक पल्योपम कहते हैं। ऐसे दस कोड़ा-कोड़ी कुएं खाली हों, उतने समय को एक सागरोपम कहते हैं।)