Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
हिन्दी-विवेचन
जैन धर्म के मूल उद्देश्य को समझने के लिए प्रस्तुत सूत्र महत्त्वपूर्ण है। अहिंसा की निष्ठा का इससे अधिक वर्णन अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। इसमें बताया गया है कि अतीत, अनागत एवं वर्तमान तीनों काल में रहने वाले समस्त तीर्थंकरों का यही उपदेश रहा है कि किसी भी प्राणी, भूत, जीव एवं सत्त्व की हत्या नहीं करनी चाहिए, उन्हें पीड़ा और सन्ताप नहीं देना चाहिए। यही धर्म शुद्ध है, नित्य है, शाश्वत है। इसके आचरण से जीव दुर्गति के द्वार को बन्द करके सुगति या मोक्ष की ओर बढ़ता है, आत्मकल्याण के पथ पर अग्रसर होता है। इसलिए वृत्तिकार ने अहिंसा की इस महासाधना को दुर्गति के लिए अर्गला एवं सुगति के लिए सोपान रूप बताया है।
यह अहिंसा धर्म सर्व प्राणिजगत के लिए हितकर है, कल्याणरूप है। इससे समस्त जीवों को शांति मिलती है, सबको आत्मविकास का सुअवसर मिलता है, इसलिए इसका समस्त प्राणियों को उपदेश देना चाहिए, भले ही, वे सुनने के इच्छुक हों या न हों; सुनने के लिए उपस्थित हों या न हों; मन-वचन-काय से संवृत्त हों या न हों; सांसारिक उपाधि से मुक्त हों या न हों; धन-वैभव एवं परिवार से अनासक्त हों या न हों अथवा हम एक शब्द में यों कह सकते हैं कि पापी एवं धर्मी सभी व्यक्तियों को यह उपदेश देना चाहिए। अहिंसा का मार्ग सबके लिए समान रूप से खुला है। साधना के क्षेत्र में ऊंच-नीच, अमीर-गरीब; धर्मी-अधर्मी का कोई भेद नहीं है। जीवन की श्रेष्ठता एवं निकृष्टता बीते हुए जीवन से नहीं नापी जाती, प्रत्युत वर्तमान एवं भविष्य के जीवन से नापी जाती है; अतः जब साधक जागृत होता है, संयम एवं अहिंसा के पथ पर बढ़ता है, तभी से उसके जीवन का विकास आरम्भ हो, जाता है और वह विश्व के लिए वन्दनीय एवं पूजनीय बन जाता है। अस्तु, अहिंसा धर्म का सभी प्राणियों को समान भाव से उपदेश देना चाहिए।
प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि तीनों काल में होने वाले तीर्थंकर इसी अहिंसा धर्म का उपदेश देते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि धर्म अनादि-अनन्त है। यह बात अलग है कि कुछ क्षेत्रों में कुछ काल के लिए तीर्थंकर एवं तीर्थंकरों का शासन नहीं होता। परन्तु महाविदेह क्षेत्र में हर समय तीर्थंकरों का शासन रहता है। अतः कर्मभूमि में धर्म की सरिता सदा बहती रहती है और धर्म का आधार अहिंसा है, 1. दुर्गत्यार्गलासुगतिसोपानदेश्यः।
-आचारांग वृत्ति