Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
अणु, सचित्त और अचित (चेतना वाला वा चेतना रहित) 'रूप से अनेक प्रकार का है' । त्यागी-मुनि-विरत भी यदि मूर्छायुक्त हों तो वे भी परिग्रह वाले ही होते हैं। इसी परिग्रह में कितनेक जीवों को महाभय होता है। अतः लोक वित्त का विचार करके इसका परित्याग करे। इस परिग्रह के संग का त्याग करता हुआ भययुक्त नहीं होता। हिन्दी-विवेचन
प्रस्तुत सूत्र में भय का कारण बताते हुए कहा गया है कि संसार में जितने भी भय हैं, वे सब परिग्रही व्यक्ति को हैं। जब प्राणी पदार्थों एवं शरीर पर आसक्ति एवं ममत्वभाव रखता है, तो उसे कई तरह की चिन्ताएं लग जाती हैं। वह रात-दिन चिन्तित, सशंक एवं भयभीत-सा रहता है। किन्तु अपरिग्रही मुनि को किसी तरह की चिन्ता एवं भय नहीं होता; यहां तक कि मृत्यु के समय भी वह निर्भय रहता है। क्योंकि शरीर पर भी उसे ममत्व भाव नहीं है। वह शरीर को केवल संयम साधना का साधन मानता है और साथ में वह यह भी जानता है कि यह नष्ट होने वाला है। अतः उसके नाश होने के समय उसे न चिन्ता होती है और न भय ही होता है। परन्तु साधु बनने के पश्चात् भी जो शरीर पर एवं अन्य साधनों पर ममत्वभाव रखते हैं, वे नय, से मुक्त नहीं होते और ऐसे साधक परिग्रह से भी सर्वथा मुक्त नहीं होते। ___ इससे स्पष्ट है कि भय का मूल कारण परिग्रह है। इसकी आसक्ति के कारण मानव मन में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास का भाव उबुद्ध होता है और इसी कारण वह सदा भयभीत रहता है। चाहे परिग्रह परिणाम में थोड़ा हो या बहुत, वह-एक दूसरे के मन में शंका-सन्देह एवं भय को जन्म देता है और दो दिलों के बीच में भेद की दीवार खड़ी कर देता है। इसलिए आगम में मुनि के लिए परिग्रह का सर्वथा त्याग करना अनिवार्य कहा गया है। ___ परिग्रह भी दो प्रकार का है-द्रव्य और भाव। भाव परिग्रह-मूर्छा, आसक्ति आदि है। द्रव्य परिग्रह भी लौकिक वित्त और लोकवृत्त के भेद से दो प्रकार का माना गया है। धन-धान्य आदि परिग्रह लौकिक वित्त में गिना गया है और आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा आदि परिग्रह लोकवृत्त में माना गया है। सभी तरह का परिग्रह भय का कारण है। इसलिए मुनि को परिग्रह मात्र का त्याग करके निर्भय बनना चाहिए। अतः साधु के लिए थोड़ा या बहुत परिग्रह त्याज्य है।
इस विषय को और स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं।