Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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अष्टम अध्ययन, उद्देशक 4 पंडिवन्ने अहापरिजुन्नाइं वत्थाइं परिलविज्जा, अदुवा संतरुतरे, अदुवा, ओमचेले, अदुवा एगसाडे, अदुवा अचेले॥209॥
छाया-अथ पुनरेवं जानीयात्-अपक्रान्तः खलु हेमन्तः ग्रीष्मः प्रतिपन्नः यथा परिजीर्णानि वस्त्राणि परिष्ठापयेत् अथवा सान्तरोत्तरोऽथवा अवमचेलः अथवा एकशाटकः अथवा अचेलः।
पदार्थ-अह-अब। पुण-पुनः। एवं-इस प्रकार। जाणिज्जा-जाने। खलुनिश्चय । हेमंते-हेमन्त काल । उवाइक्कते-अतिक्रान्त हो गया है और। गिम्हे-ग्रीष्म काल। पडिवन्ने-आ गया है तब। अहापरिजुन्नाइं-यथा परिजीर्ण । वत्थाइं-वस्त्रों को। परिट्ठविज्जा-परिष्ठापन कर दे-छोड़ दे। अदुवा-अथवा । संतरुत्तरे-यदि शीत के पड़ने की सम्भावना हो तो वह समर्थ वस्त्र का त्याग न करे, उसे पहने या पास रक्खे। अदुवा-अथवा। ओमचेले-तीन वस्त्रों में से कम कर दे। अदुवाअथवा। एगसाडे-एक ही वस्त्र रखे जिससे सारा शरीर आच्छादित हो जाए। अदुवा-अथवा। अचेले-रजोहरण और मुखवस्त्रिका के अतिरिक्त अन्य सब वस्त्रों को छोड़कर अचेलक हो जाए।
मूलार्थ-वह अभिग्रहधारी भिक्षु जब यह समझ ले कि हेमन्त-शीत काल चला गया है और ग्रीष्मकाल आ गया है और ये वस्त्र भी जीर्ण-शीर्ण हो गए हैं। ऐसा समझकर वह उनको त्याग दे। यदि निकट भविष्य में शीत की संभावना हो तो मजबूत वस्त्र को धारण कर ले अथवा पास में पड़ा रहने दे। शीत कम होने पर वह एक वस्त्र का परित्याग कर दे और शीत के बहुत कम हो जाने पर दूसरे वस्त्र का भी त्याग कर दे, केवल एक वस्त्र रखे जिससे लज्जा का निवारण हो सके अथवा शरीर आच्छादित किया जा सके। यदि शीत का सर्वथा अभाव हो जावे तो वह रजोहरण और मुखवस्त्रिका को रखकर वस्त्र मात्र का त्याग करके अचेलक बन जाए।
हिन्दी-विवेचन
वस्त्र की उपयोगिता शीत एवं लज्जा निवारण के लिए है। यदि शीतकाल समाप्त हो गया है और वस्त्र भी बिलकुल जीर्ण-शीर्ण हो गया है, तो वह पूर्व सूत्र में