Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
808
श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
में इसका एक दूसरा अर्थ 'अनुकालधम्म' भी दिया गया है और उसका अभिप्राय यह बताया गया है कि तीर्थंकरों को भविष्य में सोपधिक-वस्त्र-पात्र आदि उपधि सहित धर्म का उपदेश देना पड़ता है।
अनुधर्मिता शब्द का प्रयोग संस्कृत कोश में नहीं मिलता, किन्तु पालिकोश को देखने से ज्ञात होता है कि पालि में यह शब्द ‘अनुधम्मता' रूप से मिलता है। कोश में इसका अर्थ-Lawfulness (धर्म सम्मतता), Conformity of Dhamma (धर्म के अनुरूप) किया गया है। पालि में ‘अनुधम्म' शब्द का भी प्रयोग मिलता है। उसका भी Conformity or accordance with the Law (नियम के अनुसार), Lawfulness (धर्म सम्मतता) Truth (सच्चाई) अर्थ किया गया है। पालि में 'धम्मानुम्म' शब्द का प्रयोग भी मिलता है। उसका अर्थ है-मुख्य-गौण सभी प्रकार का धर्म। इन शब्दों के प्रयोग और उनके अर्थों पर ध्यान दिया जाए तो ‘अनुधर्मिता' का अर्थ होता है कि भगवान महावीर ने धर्म के अनुकूल आचरण किया। अस्तु, चूर्णिकार एवं टीकाकार... ने भी जो अर्थ किया है, वह भी असंगत नहीं है। क्योंकि अब यह प्रश्न उठता है कि धर्म कौन सा? तब उत्तर यही मिलता है- 'जो पूर्व में आचरण का विषय बना हो।' अतः वह केवल धर्म नहीं, बल्कि अनुधर्म-परम्परा से प्रवहमान धर्म है। चूर्णिकार का ‘अनुकाल धर्म' भी सामर्थ्य लब्ध अर्थ माना जा सकता है। जैसा उन्होंने स्वयं आंचरण किया, वैसा आचरण दूसरे साधु भी करें। इस अपेक्षा से ‘अनुकाल धर्म' भी असंगत नहीं कहा जा सकता है। ___इससे यह स्पष्ट हो गया कि भगवान महावीर ने अपने उपयोग के लिए या उस से शीत आदि का निवारण करने की भावना से वस्त्र को स्वीकार नहीं किया। क्योंकि दीक्षा लेते ही उन्होंने यह प्रतिज्ञा धारण कर ली थी कि मैं इस वस्त्र का हेमन्त में उपयोग नहीं करूंगा, अर्थात् सर्दी के परीषह से निवृत्त होने के लिए इससे अपने शरीर को आवृत नहीं करूंगा।
दीक्षा लेने के पूर्व भगवान के शरीर पर चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों की मालिश एवं लेपन किया गया था। उस सुगन्ध से आकर्षित होकर भ्रमर आदि जन्तु आकर भगवान को कष्ट देने लगे। उसका वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं-.. 1. आचाराङ्ग सूत्र (पं. दलसुख मालवणिया) -श्रमण, वर्ष 9, अंक 27 -