Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
देव और नारकी के जन्म-स्थान को उपपात कहते हैं और उपपात से उत्पन्न होने के कारण ये औपपातिक कहलाते हैं ।
910
औपशमिक-सम्यक्त्व-जिसमें दर्शन - मोह कर्म की सातों प्रकृतियों को उपशम शांत कर दिया है, दबा दिया है।
अंगिरा - एक महान् ऋषि । वैदिक परंपरा की मान्यता है कि ईश्वर ने इन ऋषियों (अङ्गिरा आदि) को वेदों का रहस्य बताया था ।
अंडज - अंडे से उत्पन्न होने वाले प्राणी ।
अंतर्दीपज-मनुष्य-लवण समुद्र में स्थित द्वीपों में जन्मने वाले मनुष्य । वैसे यह क्षेत्र भी अकर्मभूमि ही है ।
कटिबन्ध - धोती के स्थान में पहनने का वस्त्र ।
कर्तृत्व-कर्म-कार्य का करने वाला ।
कर्म बद्ध - कर्मों से बँधी हुई ।
कर्मभूमि मनुष्य - जिस क्षेत्र में मनुष्य कृषि, व्यापार, नौकरी एवं शस्त्रास्त्र का काम करके, पुरुषार्थ करके अपना जीवन यापन करता है, उसे कर्मभूमि कहते हैं और उस क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले मनुष्य को कर्मभूमि- मनुष्य ।
कर्मवादी - कर्म के स्वरूप पर प्रकाश डालने वाला ।
कर्मा श्रव - कर्म के आने का द्वार ।
कल्प-सूत्र—-आचार्य भद्रबाहु द्वारा रचित एक शास्त्र, जिसमें मुनि-कल्प (मर्यादा), भगवान ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर के जीवन का वर्णन, भगवान महावीर के शासन की पाट परम्परा ( स्थविरावली) का वर्णन है ।
कल्पातीत - जिनके लिए उनका अपना ज्ञान एवं आचरण ही कल्प या मर्यादा
थी।
कषायमूलक-बध्यमान कर्म - कषाय के मूल निमित्त से बंधे हुए कर्म । कायोत्सर्ग - शरीर के ममत्व का त्याग करना ।
कार्मण शरीर-संसार में स्थित आत्मा के साथ लगा हुआ एक सूक्ष्म शरीर जो कर्मों को ग्रहण करता है और सदा काल साथ रहता है । मृत्यु के समय स्थूल शरीर