Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 1004
________________ पारिभाषिक शब्दकोश तादात्म्य सम्बन्ध - गुण और गुणी की एक रूपता का सम्बन्ध, अर्थात् गुण और गुण का स्वाभविक या सदा स्थित रहने वाला सम्बन्ध । तितिक्षा - सहनशीलता, सहिष्णुता । तीर्थंकर - साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका चतुर्विध- चार प्रकार के संघ (समूह) को तीर्थ कहते हैं और इसके संस्थापक को तीर्थंकर । वर्तमान कालचक्र में 24 तीर्थंकर हुए हैं, उनमें भगवान ऋषभदेव प्रथम हैं और भगवान महावीर अन्तिम। तेजस्काय-जिन जीवों ने अग्नि के शरीर को धारण कर रखा है। 915 तेजोलेश्या - एक शक्ति, जिसके द्वारा तपस्वी साधक अपने प्रतिद्वन्द्वी पर प्रज्वल्यमान पुद्गल फैंकता है, जिससे वह जलकर भस्म हो जाता है। इसे तेजोलब्धि भी कहते हैं । तेरहवां गुणस्थान - जहां राग-द्वेष का अभाव होने से कर्म का बन्ध नहीं होता, परन्तु मन-वचन और काय योग का सद्भाव होने से केवल कर्म आते हैं और तुरन्त झड़ जाते हैं। यहां आत्मा को पूर्ण ज्ञान होता है । तैजस शरीर - पाचन क्रिया करने वाला एक सूक्ष्म शरीर । यह शरीर भी संसार अवस्था में जीव के सदा साथ रहता है । त्रस-स्थावर - जो प्राणी त्रास पाकर दुःख से बचने के लिए सुख के स्थान में आ-जा सकते हैं, वे त्रस और जो कहीं आ-जा नहीं सकते, एक जगह स्थिर रहते हैं, a. स्थावर । द्वीन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के प्राणी त्रस और एकेन्द्रिय प्राणी स्थावर कहलाते हैं। त्रिकालवर्ती - तीनों काल में बर्तने वाला । त्रि-करण - किसी कार्य को करना, करवाना और समर्थन करना । त्रिपथ - सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्र इन तीनों मार्गों का सुमिलन | त्रि- याम - जीवन की तीन अवस्थाएं - प्रथम याम 8 से 30 वर्ष, मध्यम- याम 30 से 60 वर्ष और अन्तिम याम 60 वर्ष से लेकर अन्तिम सांस तक का समय । या सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्र अथवा हिंसा, झूठ और परिग्रह का परित्याग । त्रि-योग-मन-वचन और काय (शरीर ) योग ।

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