Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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नवम अध्ययन : उपधान श्रुत
... चतुर्थ उद्देशक तृतीय उद्देशक में भगवान महावीर के परीषहों का वर्णन किया गया है और प्रस्तुत उद्देशक में उनके चिकित्सा-त्याग का वर्णन किया गया है। भगवान महावीर ने बीमारी के समय कभी भी चिकित्सा नहीं की। उन्होंने शारीरिक एवं आत्मिक दोनों व्याधियों को दूर करने के लिए तप का आचरण किया। तप सारे विकारों को नष्ट कर देता है। जैसे साबुन वस्त्र के मैल को दूर हटाकर उसे स्वच्छ करता है, उसी तरह तप से शरीर एवं मन शुद्ध हो जाता है। महात्मा गांधी ने उपवास के द्वारा गई रोगों की चिकित्सा की थी। शरीरविज्ञानवेत्ता भी कई रोगों को दूर करने में उपवास का सहारा लेते हैं।
__ भारतीय संस्कृति में आत्म-शुद्धि या शरीर-शुद्धि के लिए तप को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इससे बाह्य एवं आभ्यन्तर विकार नष्ट हो जाते हैं और आत्मा शुद्ध बन जाती है। आगम में बताया है कि ज्ञान से आत्मा पदार्थ के यथार्थ स्वरूप को जानता है, दर्शन से उस पर श्रद्धा करता है, चारित्र से अभिनव कर्म के आगमन को रोकता है और तप से आत्मा पूर्वकर्मों को क्षय करके शुद्ध बनता है'। अतः आत्म-विकास के लिए तप अत्यावश्यक है। इसी कारण भगवान महावीर ने साधना . काल में कठोर तप-साधना की, जिसका दिग्दर्शन प्रस्तुत उद्देशक में कराया गया है।
1. नाणेण जाणइ भावे, दंसणेण य सद्दहे। चरित्तेण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झइ॥
-उत्तराध्ययन सूत्र; 28;35 2. तप-अवधि
संख्या उसके दिन वर्ष मास दिन (1) छह मास-
1 6 x 30 x 1 = 180, 0 -6 - 0 (2) पांच दिन कम छह मास- 1 6 x 30 - 5 = 175, 0 - 5 - 25 (3) चौमासी
___9 4 x 30 x 9 = 1080, 3 -0 - 0 (4) तीन मासी
2 3 x 30 x 2 = 180, 0 -6 - 0 (5) अढ़ाई मासी
2 2/2 x 30 x 2 = 150, 0 -5 - 0