Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 994
________________ पारिभाषिक शब्दकोष 905 अनुमोदन-समर्थन। अनुवर्तन-परिभ्रमण करना, घूमते रहना। अनुष्ठान-क्रिया, साधना। अनोघतर-संसार-प्रवाह को पार करने में असमर्थ व्यक्ति। अप्काय-जिन जीवों ने पानी के शरीर को धारण कर रखा है। अप्रतिज्ञ-इच्छा, वासना एवं कामना से रहित। अप्रतिबन्ध-विहारी-वायु की तरह बिना किसी प्रतिबन्ध के विचरण करने वाला साधक। अपरिज्ञात-अनजान, जिसे किसी पदार्थ के स्वरूप का बोध नहीं है। अपरिमित-असीम (Boundless) जिसकी कोई सीमा या मर्यादा नहीं है। अपवर्ग-मोक्ष या मुक्ति। अपवाद-सयंम रक्षा के लिए विशेष परिस्थिति में जिस निषिद्ध मार्ग का अवलम्बन लिया जाए। अपारंगम-संसार-समुद्र को पार करने में असमर्थ व्यक्ति। अपौरुषेय-जो पुरुष द्वारा निर्मित नहीं है, अर्थात् ईश्वर द्वारा उपदिष्ट शास्त्र। अभक्ष्य-जो पदार्थ खाने योग्य नहीं है। अभ्याख्यान-अपलाप करना। अभिग्रह-प्रतिज्ञा विशेष। अमनोज्ञ-चारित्र से हीन शिथिलाचारी साधु या चारित्र एवं श्रद्धा से भ्रष्ट या रहित साधु-सन्न्यासी। अयोगी गुणस्थान-आत्म-साधना का चरम विकास, इस गुणस्थान की आयु कुछ क्षणों की है-अ इ उ ऋ और लू के उच्चारण में जितना समय लगता है, उतने समय की। यहां पहुंचते ही आत्मा समस्त कर्मों का क्षय करके कर्म-जन्य मन-वचन और काय (शरीर) योग का निरोध कर लेता है और तुरन्त सिद्धत्व को प्राप्त कर लेता है।

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