Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
____ मूलार्थ-उस प्रदेश में ऐसे व्यक्ति बहुत ही कम थे, जो भगवान को काटते हुए कुत्तों से छुड़ाते थे। प्रायः वहां के लोग काटते हुए कुत्तों को छू-छू करके काटने के लिए और अधिक प्रोत्साहित करते थे। वे ऐसा प्रयत्न करते थे कि ये कुत्ते श्रमण भगवान महावीर को काटें। हिन्दी-विवेचन
पूर्व गाथा में बताया गया है कि अनार्य लोग भगवान पर कुत्तों की तरह दांतों का प्रहार करते थे। प्रस्तुत गाथा में बताया गया है कि वे जब किन्हीं कुत्तों को भगवान पर झपटते हुए देखते तो उन्हें दूर नहीं हटाते, अपितु तमाशा देखने के लिए वहां खड़े हो जाते और उन्हे छू-छू करके और अधिक काटने की प्रेरणा देते थे। ऐसे क्रूर हृदय के लोगों में कभी कोई एक-आध व्यक्ति ही ऐसा निकलता, जो कुत्तों को दूर करता था। भगवान स्वयं कुत्तों को हटाते नहीं थे। वे इस कार्य को निर्जरा का कारण समझ कर समभावपूर्वक सहन करते थे। यह उनकी सष्णुिता एवं वीरता का एक अनूठा उदाहरण है।
उस प्रदेश में दिए गए कष्टों के विषय में सूत्रकार कहते हैं- .. मूलम्- एलिक्खएजणा भुज्जो, वहवे वज्ज भूमि फरुसासी।
लठिं गहाय नालियं, समणा तत्थ य विहरिंसु॥5॥ छाया- ईदृक्षान् जनान् भूयः वहवः वज्र भूमौ परुषाशिनः। '
यष्टिं गृहीत्वा नालिका, श्रमणाः तत्र विजहुः। पदार्थ-एलिक्खए-वहां इस प्रकार के स्वभाव वाले। बहवे जणा-बहुत से लोग थे। उस देश में श्रमण भगवान महावीर। भुज्जो-पुनः पुनः विचरे और उस। वज्जभूमि-वज्र भूमि में बहुत-से लोग। फरुसासी-तामसी भोजन करने के कारण कठोर स्वभाव वाले थे, अतः। समणा-बौद्ध आदि भिक्षु। य-अथवा। नालियं लठिं गहाए-अपने शरीर से चार अंगुल अधिक। लट्ठि-लकड़ी लेकर। तत्थ-उस देश में। विहरिंसु-विचरते थे।
मूलार्थ-इस प्रकार के अनार्य देश में श्रमण भगवान ने पुनः-पुनः विहार किया था। उस वज्र भूमि में निवसित क्रोधी मनुष्य भिक्षुओं के पीछे कुत्ते छोड़ देते