Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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अष्टम अध्ययन, उद्देशक 6
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वह पंडितमरण भवान्तर में साथ जाने वाला है। शेष पाठ पूर्ववत् समझें। इस प्रकार मैं कहता हूं। हिन्दी-विवेचन
जीवन के साथ मृत्यु का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। उसका आना निश्चित है। इसलिए साधक मृत्यु से घबराता नहीं। उसके लिए यह आदेश दिया गया है कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप की साधना से वह अपने आपको पंडितमरण प्राप्त करने के योग्य बनाए। साधना करते हुए जब उसका शरीर सूख जाए, इन्द्रियां शिथिल पड़ जाएं और शारीरिक शक्ति का ह्रास होने लगे, उस समय वह साधक जीवनपर्यन्त के लिए आहार आदि का त्याग करके समभाव पूर्वक आत्मचिन्तन में संलग्न होकर समाधिमरण की प्रतीक्षा करे।
ग्राम, खेट, कोट, पत्तन, द्रोणमुख, आकर-खान, सन्निवेश, राजधानी आदि स्थानों में से वह जिस किसी भी स्थान पर स्थित हो, वहां की भूमि की प्रतिलेखना कर लेनी चाहिए। भूमि प्रमार्जन के साथ पेशाब आदि का त्याग करने का स्थान भी भली-भांति देख लेना चाहिए। वहां पर जीव-जन्तु, हरी घास आदि न हो। ऐसे निर्दोष स्थान में तृण की शय्या बिछाकर और नमोत्थुणं का पाठ पढ़कर इङ्गित-मरण अनशन को स्वीकार करे। ___इस तरह समभाव पूर्वक प्राप्त की गई मृत्यु आत्मा का विकास करने वाली है। इससे कर्मों का क्षय होता है और आत्मा शुद्ध एवं निर्मल बनती है। इस मृत्यु को वही व्यक्ति स्वीकार कर सकता है, जिसकी आगम पर श्रद्धा-निष्ठा है। क्योंकि श्रद्धानिष्ठ व्यक्ति ही परीषहों के उत्पन्न होने पर उन्हें समभाव पूर्वक सह सकता है
और राग-द्वेष पर विजय पाने का प्रयत्न करता हुआ अपनी साधना में संलग्न रह सकता है।
यह अनशन सागारिक अनशन की तरह थोड़े समय के लिए नहीं, अपितु जीवन पर्यन्त के लिए होता है। इन अनशन के द्वारा साधक समाधि मरण को प्राप्त करता है।
॥ षष्ठ उद्देशक समाप्त ॥