Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त “आरम्भाओ तिउटइ” पद में पंचमी के अर्थ में चतुर्थी विभक्ति एवं भविष्यत् काल के अर्थ में वर्तमान काल का प्रयोग किया गया है। वृत्तिका का भी यही मत है' ।
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किसी प्रति में चतुर्थ पद में “कम्मुणाओ तिउट्ठई” यह पाठान्तर भी उपलब्ध होता है। इसका तात्पर्य है - आठ प्रकार के कर्मों से पृथक् होना ।
अब संलेखना के आभ्यन्तर अर्थ को स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम् - कसाए पयणू किच्चा, अप्पाहारे तितिक्खए । अह भिक्खू गिलाइज्जा, आहारस्सेव अन्तिय ॥ ॥
छाया - कषायान् प्रतनून् कृत्वा, आहारः तितिक्षते । अथ भिक्षुग्लयेत्, आहारस्येव अन्तिकम् ॥
पदार्थ-कसाए–कषाय। पयणु-पतली । किच्चा - करके । अप्पाहारे-अल्प आहार करने वाला । तितिक्खए - परीषहों एवं दुर्वचनों को सहन करे । अहं - अथ यदि । भिक्खू - साधु, आहार के बिना । गिलाइज्जा - ग्लानि को प्राप्त होता है, तो वह । आहारस्सेव - आहार का ही । अन्तिय-अन्त कर दे ।
मूलार्थ - मुनि पहले कषाय कम करके फिर अल्पाहारी बने और आक्रोश आदि परीषों को समभाव से सहन करे । यदि आहार के बिना ग्लानि पैदा होती हो तो वह आहार को स्वीकार कर ले; अन्यथा आहार का सर्वथा त्याग करके अनशन व्रत स्वीकार कर ले |
हिन्दी - विवेचन
समाधिमरण को प्राप्त करने के लिए संलेखना करना आवश्यक है और संलेखना के लिए तीन बातों की आवश्यकता है - 1 - कषाय का त्याग, 2 – आहार का कम करना और 3 - परीषहों को सहन करना । कष् का अर्थ संसार है और आय का अर्थ
. 1. आरम्भणं आरम्भः शरीरधारणायान्नपानाद्यन्वेषणात्मकः तस्मात् त्रुट्यति अपगच्छ - तीत्यर्थः ।
सुब् व्यत्ययेन पञ्चम्यर्थे चतुर्थी, पाठान्तरं वा कम्मुणाओ तिउटइ कर्माष्टभेदं यस्मातु त्रुटयिष्यतीति त्रुट्यति, वर्तमानसामीप्येवर्तमान वद्धा (पा. 3-3-131 ) इत्यनेन भविष्यत् कालस्य वर्तमानता । - आचारांग वृत्ति