Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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षष्ठ अध्ययन, उद्देशक 1
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.. मोह कर्म के उदय से भय होता है। उसका क्षय या क्षयोपशम होने पर आत्मा में निर्भयता आती है। इसी बात को बताते हुए सूत्रकार कहते हैं।
मूलम्-बहुदुक्खा हु जंतवो, सत्ता कामेसु माणवा, अबलेण वहं गच्छंति सरीरेणं पभंगुरेण अट्टे से बहुदुक्खे इइ बाले पकुव्वइ, एए रोगा बहू नच्चा आउरा परियावए नालं पास, अलं तवेएहिं, एयं पास मुणी! महब्भयं नाइवाइज्जा कंचणं॥175॥ . छाया-बहु दुःखा हुः (खलु) जन्तवः सक्ताः कामेषु मानवाः अबलेन वधं गच्छन्ति शरीरेण प्रभंगुरेण आर्तः स बहुदुःख इति बाल प्रकरोति एतान् रोगान् बहून ज्ञात्वा आतुराः परितापयेयुः नालं पश्य! अलं तव एभिः एतत् पश्य मुने! महद् भयं नातिपातयेत् कञ्चन।
· पदार्थ-हु-जिससे–हिंसादि कर्मों से। जंतवो-जीव। बहुदुक्खा-बहुत दुःखी हैं। माणवा-मानव। कामेसु-काम-भोगों में। सत्ता-आसक्त हैं, मूर्छित हैं। अबलेण-बल से रहित। सरीरेणं-औदारिक शरीर के द्वारा। पभंगुरेण-जो स्वतः विनाशशील है। वहं-वध-विनाश को। गच्छन्ति-प्राप्त होते हैं। से-वह। अट्टे-राग और द्वेष से व्याकुल चित्त वाला जीव। बहुदुक्खे-बहुत दुःख पाता है तथा। एए-ये सब। रोगा-रोग। बहू-बहुत उत्पन्न हुए। नच्चा-जानकर-चिकित्सा के लिए जीवों को मारकर चिकित्सा करनी चाहिए। इह-इस प्रकार। बाले-बाल । पकुव्वइ-क्रिया करता है और। आउरा-आतुर होकर। परियावए-प्राणियों को परिताप देता है। पास-हे शिष्य तू देख? नालं-कर्म रोग चिकित्सा के द्वारा उपशान्त नहीं हो सकता। तवेएहि-तुझे पापकारी चिकित्सा विधि से। अलं-दूर रहना चाहिए, अर्थात् तुमको यह पापकारी चिकित्सा नहीं करनी चाहिए। मुणी-हे मुने! एयं-यह प्राणिबध। पास-देख। महब्भयं-महान् भय रूप है, अतः। कंचणं-किसी प्राणी का। नाइवाइज्जा-अतिपात मत कर। ___मूलार्थ-हिंसादि कर्मों से जीव बहुत दुःखी हो रहे हैं। संसारी मनुष्य काम-भोगों में आसक्त हैं। क्षण भंगुर निर्बल शरीर के द्वारा जीव विनाश को प्राप्त होते हैं, वे रोगादि से पीड़ित जीव बहुत दुःखित हैं। बाल-अज्ञानी जीव इस प्रकार बोलते हैं