Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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षष्ठ अध्ययन, उद्देशक 2
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और उनके प्रति क्रूर भाव भी न लाए। इतना ही नहीं, यदि कोई हिसंक पशु या मनुष्य आदि उसके शरीर का भी नाश करता हो, तब भी उसे बुरा-भला न कहकर, उस वेदना को यह समझकर समभाव पूर्वक सहन करे कि यह शरीर नाशवान है और मेरी आत्मा अविनाशी है। इस शरीर के नाश होने पर भी उसका अस्तित्व समाप्त नहीं होता। इस प्रकार अनित्य एवं अशरण भावना के द्वारा अपने शरीर पर से ध्यान हटाकर आत्मचिन्तन को तीव्र बनाने का प्रयत्न करे। इस तरह समभाव पूर्वक परीषहों को सहन करने वाला साधक राग-द्वेष पर विजय प्राप्त करके शीघ्र ही वीतराग पद को प्राप्त करके सिद्ध-बुद्ध एवं मुक्त बन जाता है।
'त्तिबेमि' की व्याख्या पूर्ववत् समझें।
॥ द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥