Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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षष्ठ अध्ययन : धुत
तृतीय उद्देशक
द्वितीय उद्देशक में कर्म-निर्जरा की बात कही है। कर्म की निर्जरा अनासक्ति एवं सहिष्णुता पर आधारित है। अतः प्रस्तुत उद्देशक में बताया है कि वस्त्र आदि के फट जाने पर या अनुकूल वस्त्र न मिलने पर मन में संवेदन नहीं करे। अपितु, अनासक्त भाव से परीषहों को सहन करते हुए संयम का पालन करे। इसीका उपदेश देते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्-एयं खु मुणी आयाणं सया सुयक्खायधम्मे विहूयकप्पे निज्झोसइत्ता, जे अचेले परिवुसिए तस्स णं भिक्खुस्स नो एवं भवइ-परिजुण्णे मे वत्थे, वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइस्सामि, सूई जाइस्सामि, संधिस्सामि, सीविस्सामि, उक्कसिस्सामि, वुक्कसिस्सामि, परिहिस्सामि, पाउणिस्सामि, अदुवा तत्थ परिक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंसमसगफासा फुसंति, एगयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेइ अचेले लाघवं आगममाणे, तवे से अभिसमन्नागए भवइ, जहेयं भगवया पवेइयं तमेव अभिसमिच्चा सव्वओ सव्वताए संमत्तमेव समभिजाणिज्जा, एवं तेसिं महावीराणं चिररायं पुव्वाइं वासाणि रीयमाणाणं दवियाणं पास अहियासियं॥182॥ ___छाया-एतत् खु मुनिः आदानं सदा स्वाख्यातधर्मा विधूतकल्पः निर्दोषयित्वा योऽचेलः षर्युषितः तस्य (ण) भिक्षोः तद् भवति परिजीर्णं मे वस्त्रं, वस्त्रं याचिष्ये, सूत्रंयाचिष्ये, सूचिं च याचिष्ये, सन्धास्यामि, सेविष्यामि, उत्कर्षयिष्यामि, व्युत्कर्षयिष्यामि, परिधास्यामि, प्रावरिष्यामि, अथवा तत्र पराक्रममाणं भूयोऽचेलं तृणस्पर्शाः स्पृशन्ति, शीतस्पर्शाः स्पृशन्ति, तेजः स्पर्शाः स्पृशन्ति,